राजस्थान का सामाजिक जीवन | Rajasthan Ka Samajik Jivan

Rajasthan Ka Samajik Jivan by जगदीश सिंह गहलोत - Jagdish Singh Gehlot

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ट शासन के विरुद्ध परान्दोलन करने वालो में अजु पलाल सेठी केसरीसिंह घारहठ राव गोपालसिंह दामोदरलाल राठी व विजयसिंह पथिक श्रग्रणीय थे । विजयसिह पथिक ने विजोलिया का सुप्रसिद्ध किसान श्रान्दोलन (1913 - 1922) वडी कुशलता से चलाया । यह श्रान्दोलन वेगार्र लागबाग श्रत्याधिव लगान झादि से तग झाव र ठिकाने के विरद्ध चलाया गया था इस भ्रान्दोलन में पथिक के अलावा रामनारायण चौधरी वे मासकलाल वर्मा का भी महत्वपूर्ण भाग रहा । यह आ्रान्दोलन राजस्थान स्वत्रता श्रान्दोलन के इतिहास में बहुत हो महत्वपूर्ण माना जाता है । इसी कडी में बेगू (1921-1922) व बून्दी (1922) के भान्दोलन माने जा सकते है । इनके कारण सामन्तशाही को किसानों के सामने भुकता पडा । इन म्रात्दोलनों के कारण देहाती स्तियों में भी कुछ जायूति श्राई । वे भी पुरुषों के साथ सद्याग्रह में सम्मिलित हुई । पुरुषों मे जो राजनैतिक जागृति श्राई उसके फलस्वरूप विभिम रियासत मे नागरिक श्रधिकारो को प्राप्त करने हेतु सेवा सर्मितिया हितका रोणी सभायें चल पुस्तकालय श्रादि स्यापित हुए तथा प्रशासन श्रौर सरकारी अधिकारियों की स्वेच्छारिता के विरूद्ध झावाज उठाने लगे । सबसे महत्वपूर्ण संगठन राजस्थान सेवा सघ था जो सन्‌ 1921 मे वर्धा मे स्थापित हुम्रा था श्रौर जिसका मुख्य उददश्य राजस्थान की रियासतो मे ब्रिटिश हस्तक्षेप का विरोध करना तथा राजाओं आर जागी रदारो की दमनकारी नोतियों से सिधी टक्कर लेना था । जोधपुर में तत्र हो जयनारायण व्यास वा श्राविर्भावि हुमा । उन्होंने रियासती वे स्वेस्छाचारी शासन के विरूद्ध काफी सघर्प किया श्रौर इस चार वह रियासत से निर्वासित बर दिये गये । रियासत के वाहर ब्यावर अजमेर बम्बई श्रादि स्थानों मे रह वर भी उन्हान राजाशाही ये विरुद्ध चरावर श्रान्दोलन क्ये। उसी समय पहाड़ी कौत्रो में भीलो वे लिये अधिकारों वी लड़ाई मेग्राड के गाधी मोतीलाल तेजावत ने (1922- 1929 में लडी । उसके नेतृत्व मे मारवदड सिराही मैवाड डू गरपुर ईडर झादि के भोलो को सधठित होरर रियासतो सरकारी शरीर ब्रिटिश सरवार के विरूद्ध झन्दालन किय । भील तेजावत को श्रपना मसीहा मानते थे । इस भील भ्रात्दोलन को सररार ने श्रपनी सत्ता के लिये चुनौती समझा गौर इस वारण्प निमेस दमन चक्हर चला कर बुचल दिया । भील तब तो शात हो गये लेकिन श्रपने अधिरारा हे प्रति जागरूर हा गये । सच 1925 में झलवर रियासत में भी कम्तकारों से बढ़े लग्गनी के न आज व न मिल समेत




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