प्रेमचंद कुछ संस्मरण | Premchand Kuchh Sansmaran

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Premchand Kuchh Sansmaran by कमल किशोर गोयनका - Kamal Kishor Goyanka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महान्‌ कथाकार प्रेमच द 6 उपेद्रनाय भ्रइरू म्मचर से श्रापवा परिचय करे हुंग्रा ? एक छात्र दे रुप में या एक अ्रदोव दे रुप में? इस प्रथम पिच दा पापवे सन पर बा प्रभाव पढ़ा इक मुक्के ठीव सन ती याद नहीं लेकिन मरा खयाल है मैंन कुछ बहानिया लिय ली थी भौर छप भा गई थी जब मैंन प्रेमचंद को पढना शुरू क्या । मैंन ९२९ से यानी जित निना मैं ग्राठदी नबीं बा से पढ़ता था कहानी लिखना लुरूकर दिया था श्रौर मेरी कहानिया छपन भी लगी थी । मेरी पहली कहां नियों पर तो उदू मिलाप (लाहौर) के मालिव सहांधय खुगहाल चर खरसद के सुपुश्र श्री रणवीरमिह दौर वा प्रभाव था जो आ्रातिकार्रियों की वात्यनिव श्ौर रोमाती कहानिया लिखर्ते थे. फिर मैंने सुलान को पद श्रौर सयिद उसके बात प्रभभद थी उनकी पटली रचना कौन सी पटी मुझे घाज याट नहीं लेक्नि उनके पहुले कथा संग्रह सौज्वतन की कहानियां की याद है । प्रेम पच्चीसी श्रौर प्रेम बत्तौसी की पाद है । उनकें तुरू के उप यास मैंने वी ० ए० पास बरतें न करते पर लिए थे । इसके इनावा मैं यद्यपि उर्दू से लिखता था लेविन हिी पट नता था भौर घाय समात (गुगकुद) जालघर की लाइमरी मे जारर (जो मेरे घर से मीत्त डढ मील दूर भार समाज सभा झट्टा होरियारपुर ब एक्सम्बे आयता- चार बमरे मे स्पित थी श्रौर जहां तमाम हिंदी पत्र-िकाएं भ्ाती थी) मैं विभिन पत्रिकामा से छपनवाली प्रेमसचर की कहानिया भी पट करता था 1 आररावाहो सामाजिक कहानिया थो 1 तव मैं भो व नी टी कहानिया लिखता था 1 प्रमचर के साहित्यवार से मरा परिवय श्राठवीं-तदी बसा तक ही हो गया था । मुझ उनके उप यासो व॑ मुकावल मं उनकी बटानिया बहुत प्रचष्ठी लगती थी। दुनवी बई उत्डृप्ट वहानियों की याद है। थे झादशवादी बहानियां स्वत वता-्माटलन के जमानत मू बहुत अझच्ठी लगती थी । प्रेमसचद से सम्पर बरी भौर पत्र व्यदहार झारम्म करने की इछा




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