आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिंदी आलोचना | Acharya Ramchandra Shukla Aur Hindi Alochna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न हट - जा चुका है । तब वैशेषिक के प्रति हमारा कया इष्टिकोण हो १ उसकी उपेक्षा करें या उसे आ्रांघुनिक विज्ञान का पूर्वरूप मान लें १ मूलभूतों श्र परमारु्ों का सम्बन्ध वैशेषिक ने उसी रीति से निर्धारित किया है जिस रीति से श्राधघुनिक रसायनशास्त्र ने--यह हमारे लिये कम गौरव की बात नहीं है | ब्यौरा ठीक न मिलने के कारण इस पर परदा डालने की जरूरत नहीं । शुक्लजी प्राचीन दर्शन में विज्ञान-सम्मत तत्वों का उद्घाटन करते हैं श्र आधुनिक विज्ञान से उसका झन्तर भी स्पष्ट कर देते हैं । प्राचीन दर्शन के प्रति उनका यह दृष्टिकोण पुनरुस्थानवादियों श्रौर श्रन्ध श्रद्धालु जनों की उपासना-पद्धति से बिल्कुल मिन्न है । शुक्लजी के लिये प्रकृति गतिशील है । शक्ति श्र पदार्थ अन्योन्याश्रित हैं पदार्य भी शक्ति में परिवर्तित दो जाता है । प्रकृति जितनी ही विराट है उतनी ही सूचम भी । उसमें श्राकर्षण श्र श्रपसरण जैसे परस्पर विरोधी शक्तिरूपों की एकता है । भौतिक जगत्‌ के प्रति यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण शुक्लजी के दार्शनिक च्विन्तन का महत्वपूर्ण अज्ञ है । इस भौतिक जयत्‌ का एक -महत्वपूण नियम गुणात्मक परिवतेन से सम्बन्धित है । संसार के दश्यमान पदार्थ स्थिर और अपरिवर्तनशी ल नहीं हैं उनके परिमाण श्र गुणों में बराबर तब्दीली हुआ करती है । जिस प्रकार द्रव्य एक श्रवस्था से दूसरी श्वस्था में--ठोस से द्रव द्रव से वायव्य वायव्य४-से द्रव द्रव से ठोस श्रवस्था में--लाया जा सकता है उसी प्रकार गतिशक्ति भी एकरूप से दूसरे रूप में लाई जा सकती है। गति ताप के रूप में परिवर्तित हो सकती है ताप विद्यू त्‌ के रूप में विद्य तू ताप श्र प्रकाश के रूप में । ? इसी नियम के वारे में श्रागे लिखा है पदार्थों में जो नाना भेद दिखाई पढ़ते हैं वे सन्निवेश भेद से होते हैं । तेज के सम्बन्ध से वस्तुओं के गुण में बहुत कुछ फेरफार दो जाता है--जैसे कच्चा घड़ा पकने पर लाल हो जाता है | यह दन्दात्मक भौतिकवाद का प्रमुख सिद्धांत हैं जो श्रजीव से जीव और श्रचेतन से चेतन का विकास समभने में सहायता करता है । विज्ञान की एक




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