आत्मा रहस्य | Atma Rahasya

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रतनलाल जैन - Ratanlal Jain

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श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परटाथ की दो श्रेणियां १७ मदुप्य का दय भाग सो दूसरी श्रेणी के भौतिक पटाय से बिल मिलता जुलता है । वह नेत्र के द्वारा दप्टिगाचर हस्त के द्वारा स्पा जिया जाता है उसके दरीर से गघ श्राती है । मनुष्य जब मर जाता है उसवां दस्य भाग पड़ा रहता है घर जब उसका झग्नि मे दाह-सस्वार किया जाती है ता कुछ मांग जलकर वायु मे मिल जाता है छेप भाग राग्द या हती के रुप मे पडा रहता है यो नि सन्तह भौतिक पदाथ हैं। इसी प्रकार मनुष्य वा रारीर दूध जन फत धरने ब्रादि भीतिक पदार्था के द्वारा दाल ग्वस्था से पोधपित होवर प्रो श्रवस्या का प्राप्त होता है । इन बातो से सपर््ट है कि मनुष्य का दुरय चाह्म भाग शरीर नि सारेर भौतिव पदाय का बता हुमा है। मनुष्य के श्रदृरय भाग वा पर ता भय होप रहती है 1 र--दंसने-सुगनवाना भीतिक पदाथ से भिन मनुष्य जब मिसी पराथ का देखता है तो उस पटाथ वय चित्र उसहे नमन के श्रदर पुतली व पद बनता है ध्रौर व से बेर चिस सूरम ते तुम के हतन चुनने हारा मस्तिप्य तक पहुंचता है । थि उस ब्यविते बा ध्यात उस पटाथ की भ्ोर होता है तो वह पदाथ उपको निसनारई देता है एव उसकी म्रस्तित्व का भाव उसका होता है । फिर वह स्यक्ति उस पदाय दे गुण शाप श्रादि बाता पर विचार बरता है । यदि उम यपत वा ध्यान उस पदाथ मी श्रार नहीं होता है तो बट पराथ श्राल्ला के सामने होता हुमा भी दियलाइ नहीं पश्ता है न उसर्क अ्रर्पृत्व का भान होता है । इस दा मे भी उस परटाथ के चिशध झाख के भीतर पुत जी वे पीछ वनता है मौर वह सुदम ततत्तुम्ों हारा सस्तिष्व तक पूवूवत पहुंचता है। केयल श्रतर यह है थ्ि उप पयक्ति का ध्यान इस दा मे उस पराथ की श्रार नहीं है । नेत्रों के सामने पटाय होने पर उसका चित्र नेता वे भीलर पुरती के पीछे बनना एवं सुधष्म त तु के ₹येननचलप द्वारा मस्तिष्क तब पहुंचना वनचानिए नियमानुसार वरावर होता रहता है. पर तु मनुष्य के ध्यान पर वित्तान का कोद भा निमेम जायू नही होता । मनुष्य का ध्यान विचान के समस्त परिचित नियमा से वितात स्वत चर एंय मिलन हैं ।




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