बुन्देला कहावत कोश | Bundeli Kahavat Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.99 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब॒न्देली कहावत कोदा ] [ भगारी
अकौओआ सें हाती नईं बँंदत।
आए वृक्ष से हाथी नहीं बँघते । बड़ों का काम छोटों से नहीं निकलता ।
अक्का कोदों नीम बन, अम्मा सौर धान ।
' राय करोंदा जनरी उपजे अमित प्रमान ॥
जिस वर्ष अकौओआ में खूब फल आता है उस वर्ष कोदों, जिस वर्ष नीम
खूब फूलता है उस वर्ष कपास, जिस वर्ष आम में खूब बौर आता है
उस वर्ष धान, और जिस वर्ष रायकरौंदा खूब फलता है उस वर्ष ज्वार की
फसल अच्छी होती है । क़ृषि-संबंधी लोक-विद्वास ।
अगनौआ' बतर' पाऊँ तौ गेहूँ गाय बताऊं।
(१-अद्विनी आदि २७ नक्षत्रों में से ८वाँ नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र । २-वर्षा
के दिनों में धूप निकलने पर खेंती के काम के लिए मिलने वाला
अवकाश ) किसान कहता है कि भादों के महीने में यदि मुझे जोतने-
बखरने का अवकाश मिल जाय तो मैं गेहूँ की बढ़िया फसर पैदा करके
बताऊं । कु० ।
अगहन दार कौ अदहन।
अगहन के महीने के दिन उसी तरह शीघ्र निकल जाते हैं जिस प्रकार दा
के पानी का उफान शीघ्र शान्त हो जाता है ।
अगारी तुमाई, पछारी हमाई।
आगे का हिस्सा तुम्हारा, पीछे का हमारा । ऐसे स्वार्थी व्यक्ति के लिए
जो किसी वस्तु का सबसे बड़ा भाग स्वयं लेना चाहे ।
कथा--दो भाइयों ने साझे में भैंस खरीदी । उनमें से एक बड़ा होशियार
था। उसने दूसरे से कहा--देखो भाई, हम लोग इस भैंस का आधा-साझा कर-
लें तो हम लोगों में फिर कभी किसी बात का झगड़ा नहीं होगा । भस का
गे का हिस्सा तुम ले लो और पीछे का मुझे दे दो । दूसरे ने इस बंटवारे
को स्वीकार करें लिया । उसके अनुसार वह तो भैंस को चारा दाना खिलाया
करता और दूध दूसरा भाई दुद्द लिया करता ।
र्ग प् मनन.
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