शान्ति - पथ | Shanti Path

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Shanti Path by रघुवीर शरण - Raghuveer Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ उसका रंग हरा मेरे नयनों को प्रकाश, हृदय को सान्सना और च्यात्मी को सच्ची शान्ति देता हे । परमात्मा-पुरुष और उसकी माया-प्रकृति को हरा रंग बहुत ही प्यारा है और हम दोनों को भी । ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि में तो परम पिता परमात्मा का अंश -जीचात्मा हूँ और मेरी हरी साड़ी बाली-प्रमा, महदामाया प्रकृति का रूप है । बस इसीलिए सेंने हरे रंग को अपना जीवन साथी बना लिया हे । में प्रत्येक वस्तु में हरे रंग को चाहता हूँ । हरे रंग की शाक सब्जी अधिक खाता हूँ | होली पर भी हरे रंग का प्रयोग करता हूँ । मेरा वस्त्र. रूमाल तथा पैन हरा होता है किवाड़ों तथा खिड़कियों पर रोग़स थी प्राय: हरे रंग का फरवाता हूँ । क्या कहूँ !--हरे रंग को देखने के लिंए मेरी आँपें, बस हर समय व्याकुल 'और लालायित रहती हें । इसीलिए प्रातः काल उठते ही भ्रमण के लिए निकल जाता हूँ ओर प्रकृति के हरे रंग को देखकर इन आँखों को ठप करता हूँ । एक बार में देहली गया. तो बहाँ से कमरबन्द भी हरे ही लाया । जब प्रभा ने पुछा-- दोनी दी कमरवन्द हे से आये ।' मेंने कहा--'रानी ! एक तुम्हारे पेटीकोट के लिए है । कहने लगी--'औआप तो हरे रंग के बहुत ही शौक्रीन हो गए ।' मेंने मुस्कुराकर कहा--'रानी ! तुम्हारी उस दिन की हरी साड़ी ने मेरे हृदय-लोक को सदा के लिए हरा बना दिया है । अब मुझसे हरा रंग दूर न किया जा सकेंगा। अब तुम्हें भी मेरी इस रुचि को निभाना ही पढ़ेंगा । बह मुस्कुराती हुई बोलीं -'अच्छा स्वीकार । मैसी छाप की इच्छा, बही मेरी । परन्तु संसार तो आपके विचारों के




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