सिंहावलोकन | Simhavalokan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ [ सिंहावलोकन अवकाश का समय बीत चुका था | अधिवेशन दुबारा श्रारम्भ होने की घंटी बज रही थी । श्रधिवेशन में जाकर उन्हें ही बोलना था । श्वसर की बात उसी संध्या उन्हें श्रावश्यक कार्य से कलकत्त भी लोट जाना था | फरारी में उनसे फिर मुलाकात नहीं हो सकी । उस के बाद मुलाकात हुई १६४० में, जब उन्हें कांग्रेस के प्रधान पद से त्याग पत्र दे देना पड़ा था श्र वे फारवड ब्लाक का संगठन करने में लगे हुए थे । उस समय सुमाष बाबू युवक कांग्रेस का उद्घाटन करने लाहौर जा रहे थे श्र में लाहौर के प्रेस कमचारियों की कान्फ्रंस का उद्घाटन करने उसीं गाढ़ी से जा रद्दा था । सुभाष बाबू को मुकते पहचानने में कठिनाई नहीं हुई । पर फारवर्ड ब्लाक का कार्यक्रम मुझे ठीक नहीं जंच रहा था । १६३० सितम्बर में जब अपने ठहरने श्रोर निर्वाह की व्यवस्था की चिन्ता में वृन्दाबन में आाचाय जी के पास गया तो कृपलानी जी से भी मुलाकात हो गयी । मैंने उन्हें वायसराय की स्पेशल की घटना की बात याद दिलाकर कहा--“ 'देखिये हम कुछ न कर सकते हों ऐसी बात नहीं । हमारा उद्देश्य तो भगतिंदद के श्रदालत में दिये बयान के रूप में सब के सामने है । हमारे किस उद्देश्य से त्ापको आपत्ति है ? गांधी जी ने व्यथ में हमारी; निन्‍्दा का प्रस्ताव लाद्दोर कांग्रेस में रखा । इसकी क्या जरूरत थी १ गांधी जी के प्रस्ताव को पास होने में कितनी कठिनाई हुई ? श्राप स्वयं समभ सकते हैं जनता की भावना क्या है ? श्रापकों तो हमारी सहायता करनी चाहिये ।”” क़ृपलानी जी की जेसी श्रादत है उन्होंने कहा--““्पना लेक्चर तुम रहने दो । यह बताओ कि चाहते क्या हो !”--उत्तर दिया--““्रापकी माफत हम केवल श्राधिक सहायता की ही आशा कर सकते हैं ,”” कृपलानी जी ने दामी भरी कि यदि दम इस बात का श्राशइ्वासन दें कि भविष्य में हम कोई हिसात्मक घटना नहीं करेंगे तो वे हमारे सब साथियों के साधारण गुजारे के लिये झ्राधिक सहायता की जिम्मेबारी ले लेने के लिये तेयार हैं । मुक्ते यह शत कुछ श्रजीब सी लगी । दम जो काम कर सकने के लिये सहायता चाहते थे कृपलानी जी वही काम न करने की शत लगा रहे थे | मैंने उच्तर दिया--'“'छिपे रहकर केवल पेट भर लेना तो बड़ी भारी समस्या नहीं है । हम लोग कहीं भी छोटी सी मनियारी या पान की दुकान करके या किसी कारखाने में मज़दूरी या मुंशी की नोकरी करके पेट पाल ले सकते हैं । सददायता की ज़रूरत तो श्रपना श्रान्दोलन चलाने के लिये दी दे ।””




User Reviews

  • Mrs

    at 2020-03-25 17:33:37
    Rated : 10 out of 10 stars.
    इस पुस्तक को इतिहास या क्रांतिकारियों का इतिहास या देशभक्ति की श्रेणी में रख सकते हैं। इसे मैंने स्कूल के पुस्तकालय से लेकर पढ़ा था। जब मैं छठी या सातवीं कक्षा में थी। इसी को पढ़ कर मैंने क्रांतिकारियों के बारे में जाना।
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