विधवा विवाह | Vidhwa Vivah

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Vidhwa Vivah by राय बहादुर नामकचंद - Rai Bahadur Namakchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र४) है आर दास्त्र आर अकल के बाहर है इसपर यिवाह मे क्या चान्कि प्रथम विवाह के समय पर ही येचन अवस्था से (व कर बिना किसो के दिख स्त्री ओर पुरुष का घिव। हा सक्ता ह दखय मनस्सात के अध्याय दे स्छाक रे आर उसके आग वहां पर आठ पघकारक चियाह लिख है कि जिनके नाम. बरस वियाह. देय वियाह, ऋषि विवाह, घ्रज्ञाप चिचाह, अपुर चियाह, गयय चियाह, राक्षप विवाह, और पिशत् दिचाह, है इस में से गंघव वियाह की व्याख्या इस तर ह का ““'वरबध्वां गरिच्छिया अन्पोन्य संयाग रधघिव:' इसका अय यह है के यर अंत चचुअवान दृन्हा आर दुल्हन दाना के इच्छा ख जज अ.पपन से मिद्प हा उस का गंघब विवाह करत है इस कारण से ब्डी उम्र के पते माता चिता इत्यादिका को अजुपदन को अपडयक्ता नें, अप सउनतक क्या दान के अपरघक्ता है कप जब एक सत्र विज्ञान अय दया को पड़ेव का अत पल पल काल ता मानसिक दान हंत्रह्ा यठिर से कप दान कोइ कर या न का पल धिय उ प्रचेत काठ में चदत से टच! करत थे आए स्वययर के नाम से पिंड हाते थे ' स्यययर यह एसा दाग्द है कि जिपयका अत लगन भी सन। हागा अर उस दाददमें “स्व आर विटय दा याप्द मिठ है स्वयं के मायन ग्वद आर वर के सायत परी अत पतलऊ स्वुदू यांन स्वतः पसंद करन की वियीं का स्वयेदर करत है आर यही तरीका युरप के तमाम दशा मे जहां पर अत्रज्, जरमन, फ्रांस, बडी बडी अकझठ मर जातिय रहती ह जारोट इस्न लय जतर प्रथम हा 1बच ह में ज़यात दर्दा आर दल्टन की इच्छा पर विवाह का ।बतयाग किया गया है ता पफार काइ दल नहीं है कि दुसर चियाह के समय आन पर माता पिवादिक की परचानगा की अटक बाका रह




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