प्राचीन भारत | Prachin Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद प्राचीन भारत प्राचीन भारतीय इतिहास की दृष्टि से सिहलद्वीप को भी भारत के ही श्रन्तगंत रखना उचित होगा । समुद्र--ऐतिहासिक दृष्टि से भारत के समुद्र का भी बहुत महत्त्व है । प्राचीन भारतीय लोग समुद्र का जहाँ व्यापार के लिए उपयोग करते थे, वहाँ श्रपनी सम्बता का विस्तार करने के लिए भी बे समुद्रमा्ग से दूर-दूर तक जाते थे । ऐर्वी एशिया में बृहत्तर भारत का जो विकास हुआ, उसका कारण यह समुद्र ही था, जिसे पार करने के लिए भारतीय लोग श्रनेक प्रकार की नौका श्रौर जहाजों का उपयोग करते थे । (२) भारत के निवासी भारत एक श्रत्यन्त विशाल देव है। इसमे सब प्रकार की जलवायु विद्यमान है । इसमे जहाँ एक श्रोर हिमालय की ऊँची-ऊँची पबंत-श्ंखलाएँ व घाटियाँ हैं, जिन पर सदा बरफ जमी रहती है, वहाँ दूसरी श्रोर ऐसे प्रदेश भी हैं, जो उष्ण कटिवन्ध के ग्रस्तगंत होने के कारण सदा गरम रहते है । जलवायु श्ौर प्राकृतिक दशा की भिन्‍तता के समान इस देश के निवासियों में भी ग्रनेक प्रकार की विभिन्‍नताएँ पायी जाती है। इस विभिन्‍नता के श्राघार नस्ल झऔर भाषा के भेद है । मनुप्य के धरीर की आकृति, रचना श्रौर रग के श्राघार पर नुतत्त्व-ास्त्र के विद्वानों ने मनुष्यों को श्रतेक नस्लो में विभक्त करने का प्रयत्न किया है । साथ ही, भाषा की भिन्‍्नता के श्राधार पर भी मनुष्यों में भ्रनेक जातियों की भिन्‍नता प्रदर्शित की गई है। शरीर की रचना या भाषा के भेद के श्राघार पर इस प्रकार से मनुष्यों की विभिन्‍न जातियों की कल्पना करना कहाँ तक उचित व युक्तिसगत है, इस विषय पर विचार करने की यहाँ हमें आवश्यकता नहीं । पर यह स्पष्ट है, कि भारत के वर्तमान निवासियों को दृष्टि में रखकर उन्हे श्रनेक घिभागों या जातियों मे बॉटा जा सकता है । भाषा के भद को सम्मुख रम्वकर भारत-भूमि के निवासियों को जिन मुख्य विभागों में बाँटा जाता है, वे निम्नलिखित है-- (१) श्रायें--भारत के निवासियों की वहुसंख्या श्राय॑ जाति की है । भाषा की रुष्टि से भारत में भ्राय॑-भाषाझों को बोलने बालों की संख्या १०० में ७६४ है। उत्तर भारत की प्राय सभी भाषाएँ ग्रार्य-परिवार की है । उच्या, हिन्दी, पंजाबी, पण्तो, काश्मीरी, गुजराती, श्रसमी, बंगला, मराठी, सिन्धी श्ौर लहदा ये सब झार्य भाषाएँ ही है। भारत की झार्य-परिवार की भाषाओं में हिन्दी सबसे मुख्य है। इस बोलने वालों की सख्या तीस करोड के लगभग है । साहित्यिक उपयोग के लिए हिन्दी का जो रूप प्रयुक्त होता है, वह कुरु देव (गगा-यमुना के दोश्नाव का उत्तरी भाग) में बोली जाने वाली खड़ी बोली का परिप्कृत रूप है । सर्व साधारण जनता की बोलचाल मे हिन्दी भाषा के जो विविध रूप प्रयुक्त होते है, उनमे प्रमुख ये है--खड़ी बोली, ब्रजभापषा, बांगरू, राजस्थानी, पंजाबी, बुन्देली, श्रवधी, छत्तीसगढ़ी, वधघेली, भोजपुरी, मैथिली, मगहीं, गोरखाली, कुमाउँनी, गढवाली श्रौर कनतौजी । पश्चिम में हरियाणा से शुरू कर पूर्व में बिहार तक श्रौर उत्तर में हिमालय से लगाकर दक्षिण में विन्थ्याचल तक हिन्दी भाषा का क्षेत्र है । श्रसम, बगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, सिन्‍्ध, जम्मू, पंजाब,




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