हिन्दू राष्ट्र | Hindu Rashtra

Hindu Rashtra  by बलराज मधोक - Balraj Madhok

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ हिन्दू राष्ट्र प्रतीत की सफलताग्रों, गौरव, विपत्ति श्रौर दुःख की सावंजनिक स्मृतियों से होता है ।” बजंस के मतानुसार, “एक ही भरू-खण्ड में रहने वाले लोगों के समूह को राष्ट्र कहते हैं, जिनकी भाषा, साहित्य, रीति-रिवाज एक समान हों श्र उचित-भ्रनुचित के प्रति जिनकी समान जागरूकता हो ।'' ब्लंटरली के मतानुसार “विभिन्‍न व्यवसायों श्रौर सामाजिक स्तर के व्यक्तियों का ऐसा समूह, जिसकी वंशगत चेतना, भावना तथा जाति समान हो, जिनकी भाषा एक हो तथा परम्पराएँ समान हों, जो उन्हें एकता के सूत्र में पिरोकर राज्यनिरपेक्ष रूप में सभी विदेशियों से प्रथक अस्तित्व दे ।'' गटल के मतानुसार, “राष्ट्र ऐसा जन-समूह है, जिसकी जाति, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज श्रौर इतिहास एक ही हो । इनसे जन-समूह में एकता की भावना पंदा होती है भ्रौर वह उन्हें राष्ट्रीयता के सुत्र में पिरो देती है ।'' उपर्युक्त परिभाषाओओं तथा वास्तविक श्रनुभव के श्राघार पर किसी जन-समूह को राष्ट्र का नाम देने के लिए उनमें निम्नोक्त पाँच बातों की एकता का होना नितान्त श्राव्यक समभा जाता है-- १. देश, २. जाति, ३. भाषा, ४. संस्कृति तथा ४५. धर्म । रनन तथा सर श्रनस्ट बाकर जसे कुछ अन्य विचारकों ने राष्ट्री- यता की दानिक रीति से व्याख्या की है । रनन के मतानुसार, “राष्ट्र एक श्रात्मा है, जिसकी जड़ें मनुष्य के हृदय की गहराइयों में हैं न कि उन पाँच एकताय्रों में । वे तो इसके सहायक तत्त्व मात्र हैं ।” उसके मतानुसार, “दो वस्तुएं जो वास्तव में एक ही हैं, इस भ्रात्मा का निर्माण करती हैं । उनमें से एक श्रतीत की होती है तथा दूसरी वर्तमान की ।. पहली जन-साधारण की समान बपौती है श्रौर दूसरी साथ रहने तथा साँकी पैतुक देन का झधिकाधिक उपभोग करने की बलवती इच्छा है । व्यक्ति के समान ही राष्ट्र भी चिरकाल के परिश्रम, त्याग झौर भनु- .. राग का फल है । क्योंकि हमारे वतंमान शभ्रस्तित्व का भ्राघार हमारे




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