होरा शतक | Hora Shatak

Hora Shatak by ज्योतिविंद जगन्नाथ भसीन - Jyotivind Jagannath Bhasin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे ऐ हो सकती क्योंकि कारक के स्वकीय भाव में स्थित मात्र कैसे सै अनिष्ट फल की कल्पना युक्ति युक्त नहीं क्योंकि शुभ दृष्टि से बहुत श्रच्छे फल की प्राप्ति अनुभव सिद्ध है | यह भी स्मणे रहे कि पुत्र ? के सम्बन्ध में विचार करते समय नवम्‌ भाव भी विचारणीय है क्योंकि नलवम-भाव भी पंचम माव से पंचम होने के कारण पुत्र को योतक दे निज भाव हृष्ठे रनिष्ठसाह | पाप झट्दाणां निज भाव इष्टि। । करोति नाशं तद्धाचजीवनसू ॥1१०॥। कुस्मे रविः पचमणों यथाह़ि | .ज करोति.... यदि कोई नैसगिंक पाप अ्रह मगल राहु केठ शनि तथा सूर्य नैसगिक पापी माने हैं चन्द्र यदि पत्त बल में हीन हो श्रर्थात ग्रमावस्वा के छः तिथि इस श्रोर अथवा छा तिथि उस श्रोर हो तो पापी होता है बुद्ध शुभग्रह है परन्ठु पापी ग्रहों के साथ पापीबन जाता है चुहस्पति तथा शुक स्वाभाविक शुभ ग्रह हैं श्रपने भाव से सप्तम भाव में स्थित होकर अपने भाव पर डिप्ट डाले तो हृष्ट भाव के जीवन का नाश करता है । जैसे पचम भाव में कुम्भ राशि से स्थित सूर्य बड़े भाइयों जिनका विचार एकादश स्थान से किया जाता है के नाश का योतक है । यद्यपि शाख्तों में प्रसिद्ध नियम है कि यो यो भाव स्वामी युक्तो इशोवा तस्य तस्यास्ति वृद्धि श्रर्थात जो-जो भाव अपने स्वामी द्वारा युक्त अथवा हृष्ट हो उस उस भाव की बुद्धि होती है तथापि हमारा झनुभव यह है कि यह नियम जीवन के विषय में लागू नहीं होता श्रर्यात सूय के एकादश स्थान में निज राशि को




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