बृहद द्रव्य संग्रह | Brihad Dravya Sangrah

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Brihad Dravya Sangrah by आचार्य श्री नेमीचन्द्र - Acharya Shri Nemichandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बूदट्वब्यसंग्रदू: । ष् अर्थात्‌ चंपापुरस्थ प्रसिद्ध सिंदासन (पट)के खामी, पांचहजार मुनिशिष्यरूप तारागणसे बेष्टित, भव्यजीबोंके हृदयरूपी कुमुदको आनन्दित करनेवाले और देशीगणरूपी समुद्रके इद्धिकारक ऐसे श्री वीरनंदीचंद्रमा अपनी वचनरूपी चंद्रिका ( चांदनी ) से शोभायभान हैं ॥ श्रीइन्द्रनन्दी, इनकी प्रशंसा करनेवाले कई शोक हमारे देखनेमें आये हैं; परन्तु विस्तारमयसे निन्नढिखित दो शोक ही उद्धृत करते हैं । माद्यल्मरयर्थिवादिद्विरदपटुघटाटो पको पापनो दे विदित नि वाणी यस्यामिरामा सगपतिपद्वीं गाहते देवमान्या । धर स श्रीमानिन्द्रनन्दी जगति विजयतां भूरिभावानु भावी देवज्ञ: कुन्दकुन्दप्रभुपद्विनय: स्वागमाचारच यु: ॥ १ ॥ (मछिपेणप्रशस्ति) दुरितप्रदनिम्रहाद्धय॑ यदि भो भूरि नरेन्द्रवन्दितम्‌ । ननु तेन हि भव्यदेहिनो प्रणुत श्रीमुनिमिन्द्रनन्दिनमू ॥ २॥ (नीतिसार) भावाथ--परवादीरूपी ग्ेन्द्रोंकें कोपको दूर करनेमें जिनकी देवॉकरके माननीय वाणी सिंहके समान आचरण करती है; वे अनेक भाषोंको अनुभव करनेवाले श्री कुन्द कुन्दाचार्यमें भक्तिके धारक, जिनमतानुकूल आचरणमें निपुण और देवज्ञ ऐसे श्रीइन्द्रनन्दी जगत्‌में जयवंते रहें । १ । हे भव्यजीवों ! यदि. तुमको पापरूपी अहकी पीड़ासे भय है, तो बहुतसे राजाओंकरके वंदनीय ऐसे श्रीइन्द्रनंदी मुनिका सेवन करो । २ । उक्त शाजुभावके रचे हुए शान्तिचक्रपूजा १ अंकुरारोपण २. मुनिप्रायश्चित्त (प्राकृतमें) ३ प्रतिष्ठापाठ ४ पूजाकल्प ५ प्रतिमासंस्कारारोपणपूजा ६ माठकायंत्रपूजा ७ औषधिकल्प ८ भूमिकल्प ९ समयभूषण १० नीतिसार ११ ओर इन्द्रनंदिसंहिता प्राक़ृत १२ इत्यादि अैन्थ सुननेमें आये हैं । इससे जान पड़ता है कि, आप सिद्धान्तविषयमें ही प्रौढ़ नहीं थे, किन्तु चरणानुयोग और मस्त्रशाखरमं भी अतिशय निपुण थे । श्रीनेमिचन्द्रने जो श्रतिष्ठीपाठ बनाया हे, वह भी इन्हींके प्रतिष्ठापाठके आधारसे रचा हुआ है । और इनके पश्चात्‌ होनेवाढे प्रायः सभी प्रूजाप्रकरण और मन्त्रवाद॒ संबंधी शारूकारोंने आपका मत सादर श्रहण किया दे. । श्रीकनकनन्दी- इनके विषयमें हमको विशेष परिचय नह्दीं मिठा परंतु जेसे-श्रीअभयनंदी, श्रीवीरनेदी, श्रीइन्द्र- नंदी और श्रीनेमिचन्द्र ये चारों आचार्य सेद्धान्तिकचक्रवर्ततीके पदसे भूषित थे. उसी प्रकार ये भी सैद्धान्तिकचक्रवर्त्ती थे. (१) इनमेंसे नीतिसार, अंकुरारोपण तथा इन्द्रमंदिसिहिता ये तीन प्रन्थ हमारे देखनेमें भी आये हैं । संहितामें दायभाग आदिका निरूपण है, परन्तु प्राकृत दोनेसे यथार्थ अथंका भान नहीं होता । यदि इसकी झुद्ध प्राचीन श्रति और टीका टिप्पणीकी प्राप्ति हो जाय तो उसके आधारसे जैनजातिके दृष्य- भाग आदि कह व्यवहारोंमें शाल्लानुकूल खुधारा दो सकता हैं । अतः पाठकोंको इसके अन्वेषणमें खूब प्रयक्ष करना चाहिये । (२) श्रीनेमिचन्द्रप्रतिष्ठापाठ की अपूर्ण पुस्तक हमनें देखी है । छुनते हैं दक्षिणमें पूर्ण पुस्तक विधमान है । [




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