दक्षिण अफ्रिका के मेरे अनुभव | Dakshin Africa Ke Mere Anubhav
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.75 MB
कुल पष्ठ :
432
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. भवानी दयाल जी सन्यासी - Pt. Bhawani Dayal Ji Sanyaasi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्मा जी के आश्रम मैं
गभग चौद्हद वर्ष हुए; में हिन्दुस्थान के अपने
घर से इस '्सिप्राय से निकला था कि
दक्षिण श्फ्तिका पहुँचकर खूब चैन की
बंशी बजाउँगा; लेकिन भविष्य की विशाल
गोद में कौन-कौन सी घटनाएँ छिपी हुई
हैं, उसे जान लेना मानवी-बुद्धि से बाहर की
बात है । पिछले अध्याय में पाठक पढ़ चुके हैं कि कितने कष्ट और
व्यनावश्यक खन्चें के बाद हसारा बन्दी-मोचन हुआ । जहाज से
उतरने पर जहाँ एक 'ओर द्रबन की सुन्दर रचना; बिरिया-पहाड़ी
पर बने हुए सकानों की मनमोहिनी छटा; छोटी-छोटी वाटिकाओं
में लगे हुए पेड़ों और फूलों के नेत्र-र्षक दृश्य; सड़कों की
चौड़ाई. और सफाई; जनता का कोलाहलमय जीवन तथा इघर-
उधर का भीड़-भड़क्का देखकर हस सन्त्र-सुग्ध हो रहे थे, वहाँ
दूसरी ओर एक ऐसी घटना घटी; जिससे मेरे जीवन का
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