मार्क्सवादी चिन्तन | Marxwadi Chintan
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.81 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्शू
और यह महत्व विकास की उत्तरोत्तर अवस्थाओ मे अपना महत्व कम
करता जाता है । इसलिए कि अगला विकास पहले के मुकाबिलि बडा एव
प्रभावकारी होता है जिसकी चकाचौध मे पिछला विकास पिछड़ा हुआ-
सा प्रतीत होता है ।
विज्ञान और वारीगरी के विकास का दर्शन के धिकास के साथ
गहरा जौर घनिष्ठ सम्बन्ध है। जैसे कुछ घामिक पुराणपभी दर्दन वा
स्वतत्र अस्तित्व न मानवर उसे धर्म की ही एक शाखा के रूप मे पेश करने
का असफल प्रयास करते रहे है, उसी तरह ये धामिक अर्धविशवासी
विज्ञान के साथ भी खिलवाड़ करते रहे हैं। वे विज्ञान को यह हिदायत
देते रहे हैं कि वहू घारमिक पुस्तकों मे प्रतिपादित तथ्यों, सिद्धान्ता और
मान्यताओं की पुष्टि करे तथा विज्ञान सिद्ध भनुभव से यदि उन अन्घ-
विंदवासों वी पुष्टि न होती हो तो विज्ञान को धर्म के सामने सिर मुवत
कर उस रहस्य का आवरण नहीं हटाना चाहिए। इसलिए कि विज्ञान
अनुभव से सिद्ध होता है जब वि धर्म की धारणा ईश्वरीय नियमों से
सिद्ध होती है ।
परन्तु विज्ञान एव कारीगरी स्वभाव से ही चिर विद्रोही हैं । आज
सक उन्होंने रुढिवादी परम्पराओ से सघ्प करके ही अपना औौचित्य सिद्ध
किया है। जो रुढियो के सामने नतमस्तक होता है, वह सच्चा वैज्ञानिक
नहीं होता | पुराना औजार छोडकर ही कारीगर नया ओजार लेता है।
पुरानी रूढि तोडकर ही वैज्ञानिक नये सिद्धान्त का आविष्कार करता
है। अत उच्च कोटि का वारीगर और वैज्ञानिक कभी रूढिवादी नहीं
होते 1 रढिवाद और विज्ञान का जन्मजात बेर है ।
जसे जैसे विज्ञान उन्नति करता है और पैदावार के क्षेत्र में प्रवेश
करता है, वैसे वैसे कारीगरी एव कौशल मे उन्नति होती है । यह उन्नति
बारीगर वी दक्षता अनिवायें बनाती है जिससे उसदा बौद्धिक विवास
होता है । यह बौद्धि दिवस एवं नये दर्यन वी अलिवायेंता अनुभव
करवाता है । नई सामाजिव परिस्थितियों मे पुराने दार्शनिक दृष्टिकोण
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