मानविकी पारिभाषिक कोश मनोविज्ञान खंड | Manviki Paribhashik Kosh Manovigyan Khand
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.75 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भी विदेष अनुसन्धान डिये हैं ।
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स्पर्थ-संब्रेदन-मापी 1
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&९5फिस्5ं 01८ पाप ८5 [एस््पेसियो-
मीट्रिक इन्ड्स] :. स्पर्श-सवेदन-सापी
सूचवाक 1 कि
बह स्यूनतम दूरी जिस पर दो स्पथ
का अलग-अलग अनुभव होता है। इसे
देश-बोष सीमा' (50305 पाटडीए0
गंगा भी कहा जाता है । इसके शात
करने में कई प्रकार के प्रचलित स्पर्श-
संवेदनमापी यस्त्रो (8.6५00९$/011661) का
उपयोग किया जाता है । प्रायः धातु की
परंकार वी तरह की चापाकार सापनी
स्प-मापी का कॉम देती है । रपर्शमापी
को दोनों नोकों को किसी एक दूरी पर
स्थित करके प्रयोज्य की त्वचा पर एक
साथ समान दबाव से रता जाता है, औौर
उससे अपना अनुभव बताने को पहां
जाता है । यही क्रिया रपर्शमापी की नोकों
को विभिन्न दूरियो पर रपकर को जाती
है । ऐसा करने में या तो “न्यूनतम परि-
बर्तन विधि' (0०0०0 0 फतींफधव!
टभाइच) चरती जाती है था. यर्व-तत्र
“ह्थिर उद्दौपन विधि' _ (0०051301
८007] । प्रायिक विधि के साथ गलग-
गलग सांस्यिकोय क्रियाएँ उपयुक्त
होती हैं ।
वेदर का अनुमान है कि त्वचा में अनेक
संवेदन-दत्त (5दा5शांणा टंटटड) हैं ।
एक हो सवेदन-वृत्त में दो र्यानों पर सपा
होने से एक ही स्पक्न का बोध होगा |
दो विभिन्न स्पर्शों का अनुमव दो धलग”
अलग संवेदना-वृत्तों के दो स्थानों पर
स्पर्श होने से ही हो सकेगा |
स्पर्श-सवेदन-मापी सूचकांक दारीर के
विभिन्न भागों में बलगनयछग है ।
हि की सम्बन्धित कुछ प्रयोग प्राप्त मां
सह
जीम की सोक पर--१ मिठीमीटर
मेंगुली के मिरे पर-- २ मिछी मीटर
गाल पर--११ मिटौमीटर
एडी दर--२३ मिठीमीटर
हाथ के पृष्ठ पर ३१ मिलीमीटर
घुटने पर--३६ मिलीमीटर
पैर के पृष्ठ पर--५४ मिलीमीटर
सीने के पोछे--५४ मिटीमोटर
स्पर्श - संबेदन - मापी सुथवाँक का
ध्यावह्ारिक उपयोग है । इसके द्वारा किशी
व्यपित के स्पर्थ-अनुभवों की तीवणता का
ज्ञान हो जाता है । यकान की अवस्पा से
द्ि-विन्दु स्पर्शवोध-सीमे अपने-आप भेड़
जाती हैं, इसलिए इसको थकान की परीक्षा
का माध्यम भी माना गया है ।
50 8ल्१८०४ [ऐस्पे 'टिवग]: सौरदर्प धार ।
सौन्दर्यशास्प्र विपय वी अय एक रवतन्त
व्याध्ति है: (१) बह बठात्मय क्ृत्तियों
का अप्यमन है; (२) कड़ा की उदुभूति
और अनुभूति वी प्रपियाओं का अध्ययन
है, (३) प्रति की कुछ ऐसी अवश्य
और मानव की ऐसी रचनाओं का
अंघ्ययन है जी बला की परिधि के बाहर
हैं किन्तु जिनमें शौन्द् है ।
सीन्दयंशास्त्र कलानमनों विज्ञान में प्रस्तुत
सौर्दर्य का वैज्ञानिक भर दार्शनिक अध्ययन
है | सौन्दयंशार्श्र और मनोविज्ञान में भेद
है । कुछ विशेष प्रकार की बह्तुओं तथा
परिस्थितियों के होने पर सौन्दर्यशास्त्र का
केद्ीयण मसनीदेहिक क्रिया-ब्यापार की
कतिपय चुनी हुई अवस्याओं पर होता
है। सौन्दर्यशास्त्र मे आपार और पठा
की विशेषतायों पर भन्वेपण हुआ है जो
कि मनोविज्ञान में नहीं किया गय। है
मनोवैज्ञानिको की... रुचि संरचना,
थास्वादन, कत्पना, सौन्दर्यानुश्वति, नाव,
मूल्यांकन इत्यादि मैं होती है। यह प्रगति
'सौन्दर्यशाह्म मनोविज्ञान” अथवा 'बछा
मनोविज्ञान में वर्णित शी जा सकती है ।
सैर (फिर्पंटड, टिस््फूटापे शा टच दर [िम्य'-
दिवस, एकवें 'रीमे नल: प्रायी णिय
सौन्दर्यशास्त्र
विभिरन मनोवैज्ञानिक समस्याओं में हो
जो सौनदर्यधाइय से सर्म्वस्धित हैं उनमें
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