कूर्म पुराण खंड 2 | Kurma Puran Khand 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.14 MB
कुल पष्ठ :
501
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द््] कुमंपुराण वरसन्तित्पुरुपा विध्णोरन्तरचारिण 1४९ नित्य ही पुष्---ब्ातदु से रहित--नित्य घानव्द थाले--भोगी सय नारापण के समान कोर नारायण में हो परायग्ग होते हैं ॥॥४ ३1 कुछ लोग ध्यान में परापण नित्य ही योगी भ्ोर रापत इद्रपो वाले होते है । कुच जाप रिया बरते हैं--दु्ध तपश्चर्पा बरते है और पुछ दूसरे विशानी होते हैं पद अन्य लाग मिवर्जि योग में बहा वे भाव में भावित रहा बरते हूं । उनसे भी पर सनातन वासुदव प्रह्म था ध्यान विया घरते हैं । अप लोग एकान्त व सोनअवजस्व से रहित महा भागवत होते हैं । ये लोग तमौयुण से परे तत्पर विष्णु नाम याले मद को ही देवा गरते हैं ५४६ सभी चार भुजाओ ये प्राकार वाते-धप चक़ गदा में धारक---गुम्दर पोतवस्थ्र पहनने वाले भौर श्री वत्स से भवित पछ्ष सपने वाले हाते हैं ॥४० भन्य लोग महेश्वर में परायण रहने बान हैं । इनरा मरतक श्रिपुण्ट्र से अं वित रहता है । सुयोग से भूति बरण घौर सहागदद वे वाहन बाप हैं ॥४८॥ सभी लोग दाकि में संगायुक्त नित्य हो श्रान्द पूर्ण घोर निमन होते हैं । वहीँ पर विष्णु भगवादु वे अतर- चारी पुरुप ही वास क्या बरते है ॥४६॥। सत्र नारायणस्यान्यद्दुगेम दुरतिक्रममु । नारायण नाम पुर प्रासादरपशोमितमु 0५० ह्ेमप्राकारसयुक्त स्फाटिफेरमेंण्डर्पयु तमु 1 प्रभामहसवक्तिछ दुरावर्प सुशोमनमु 0५६ हम्येप्रासादसयुक्त महाट्रालसमाउ नम । हेमगोपुरसाइसे नाना रत्लोपशोभिते 1५२ शुच्ास्तरणसयुक्त विचिने समलद उनसु नन्दरनप्रिपिवावारें। खबस्तीभिश्र योशितमु 1 4३ सरोभि सवेतो युक्त वीण वेरपुनिनादितम । पतावाभिविधिशाभिरनेवासिश् शोमितसु 11५४ चाधोनि सवेतो युक्त सोपानेरटनमुपिते 1 नदीसतसह्खादय दिव्यगाननिनादितमु 11५५
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