ब्रह्म पुराण खंड 2 | Braham Puran Khand 2

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.74 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ ) रु ब्रहझपुरान
उस मत्नी से उस समय में यही घोला था कि मैं अपनी दुधो को दे
दूगा । फिर इसके अगन्तर उरा महावू मरिमान बुद्ध मन्यी ने शपने
स्वामी राजा से यहा गारकर शुरसेन के लिये वह विवाह सम्बन्धी सब ससा
चार निवेदन कर दिया था ! फिर बहुत अधिक समय व्यवीत हो जाने
पर वही वृद्ध जेमात्य वहां पर गमन करने को समुदत हो गया था ॥1 वे «-
इे£# फिर वह पहली सेना के बल के साथ सज्जित होकर
तथा वह्त्र बलड्ारो से वविभूपित होकर अन्य सभी सात्घियों को साथ में
सेकर बड़ी शीघ्रता से वहाँ गया था #४०॥ इस परम बुद्धिमान मद्दामात्यं
ने विवाह कर देने के लिये महाराज से सभी कुछ निवेदन कर दिया ॥
मह महामात्य वृद्ध था मीर अन्य सचियो से भी समावूत था ॥४॥॥
अच्ा5गन्तु न चाय चिच्ज)ति झुरसेनस्य भूपते. ।
पुत्रों नाग इति रयातों जुद्धिमान[णसागर: 10४२
क्षत्रियाणा विवाहाश् भवेयुवंहुधा नृप ।
तस्मार्छुस्चरलकार्रविवाहू स्पान्महामतें ॥४३
क्त्रिया ब्राह्मण व सत्या वाच वदन्ति हि ।
तस्माच्छस्नैरतका रेंविवाहस्त्वनुमन्यतासु ॥४४
चूद्धामात्यवच ध्रवा विजपों राजसत्तम: 1
मेने वाव तथा सत्यमसात्य भुपति तदा ॥४५
विवाहुमकरोद्ाजा भोगवत्या. सविस्तरमु ।
शेप च यथादास्थ्र प्रेययामास ता पुनः 1४६
स्वानमात्यास्तया गाश् हिरिप्यतुरणादिफमु | न
बहु दत्वाधय विजयो हुर्पण महूता युत, ॥४५.
तामादायाथ सचिवा वृद्धामात्यपपुरोगमा. ।
मतिष्ानमथाम्पेरंप सुरसेनाय ता स्नुपामु ५४४
न्यवेदयस्तेथरोचुस्ते विजयस्प वचो बहु ।
भूपणानि विचिभाणि दास्यो वस्थादिक च यू बट
उस बुद्ध भमात्य ने कहा--- भूपति शुरेन का पत्र भाग नाम से
विष्यात हैं और महान बुद्धिमान तथा गुणा का सागर है दह स्वय बहा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...