कर्म - व्यवस्था | Karm - Vyavastha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि हूँ रद 2 में आता है। आजकल यह चिद्या घढ़त कुछ लुप्त हो गई है, और जो कहीं कुछ थोड़ी बहुत है, वह भी लुप्त होती जाती है। यह विद्या परम्परा से गुप्त रकखी जाती है, क्योंकि शब्द, रन और अछ्कों के यवार्थ बोध हो जाने से मनुष्य श्रपनी इच्छा शक्ति के बल से इन देवताओं के साथ सम्भाषण कर सकता है, और उनको अपने वश करके जो चाहे वह काम भी ले सकता दे । इस र् भाषा के विपय में महात्मा “क० हृ०” का यह कथन है कि तुम अपना आशय विश की ऐसी मन्दमति शक्तियों को किस विधि समझा सकते हो और वशीभूत क्योकर कर सकते हो, जव कि इनके साथ संभापण का साधन लौकिक वाणी नहीं है, किन्तु नाद (8०पएय ) और रह ( एणणर ) के परस्पर सम्बन्धित थरयराहट से बनी हुई वाणी है । इन शक्तियों की अनेक श्रेशियाँ नाद, प्रकाश और रह के ही भेद के कारण होती हैं । इनकी सत्यता का न तो तुमको कुछ पता है और न इस पर तुम्हारा विश्वास ही है । नास्तिक, ईसाई आदि अपने अपने तर्कों के अनुसार छोगों के विश्वास को द्रं करते जाते हैं । सायन्स विद्या तो सबसे बढ़कर इसको मिध्या धर्म्म समझ कर चिश्वास दीन हुई है । देश देशान्तर के प्राचीन ग्रन्थों में इस रक्त भाषा के बहुत से. जदाहदरण मिलते हैं । मिस्र देश में भी प्राचीन समय में




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