व्याकरण - महाभाष्य भाग 1 भाग 2 | Vyakaran Mahabhashya Bhag 2 Khand 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ १ पा १ आादिक 3 हु व्याकरणमददाशाष्यसू श्दे निपाताश्व । तानि विदुर्भाझमणा ये मनीषिण: । मनस ईपिणो मनीपिणि: । गुदा भीगि निहिता नेड्गयन्ति । मुहाया भीणि निहितानि नेइगयन्ति ! न चेटन्ते । से निमिपन्तीत्य्प: । तुरीय वाचो मनुष्या बदन्ति । तुरीय हू वा एतद्वाचा यन्मनुण्येषु वर्तते । चतुर्थमित्यर्थः ॥ चत्वारि ॥ उत स्व: | उत त्वः पश्यन्न दंदर्श चाच॑मुत त्वं: शुण्वनन शुंणोत्येनामु ) उतो स्वर तन्व वि संसे जायेव पत्य॑ उशुती सुवासौ: ॥ ऋ स. १०1७१४ आपि खत्वेकः पश्यनपि न पश्यति वाचम्‌ । अपि खल्वेक: शुण्वन्नपि न शुणोस्थेनासू । अविद्वासमाहार्थशू । उतो त्वरम तनव विसखे। तनु विवुणुते । जायेव पत्थ उशती सुवासा: । तथथा जाया पत्ये कामयमाना सुवासा; स्वमात्मान उपस्ग और निपात । * तानि विडुर्नाझणा ये म्नापिण, । ” * मनीपिंण, ” अथत्‌ भन के ईश्वर (अर्थात्‌ सनकों ब्याकरणाध्ययनसे पूर्णतया नियमणमें रसनेवाठे )। ' गुदा चीगि निहिता नेदरायन्ति *--युदामें रखे हुए तन स्थान हिल्‍ते डुख्ते नहीं अर्थीत्‌ प्रकाशित नहीं होते। ' तुर्रय वाचो मनुष्या वदन्ति ”-- मनुष्योंमें चाणीका जो स्थान दिंखाई देता है, वह दास्तवमें चीथा भाग ही है। *उत्त त्व॒ पशयद्‌०” स्लोक-' वाणीका अध्ययन करके भी कुछ लोग वाणी कया है सो ढीक तरहसे नहीं जानते । उसी तरह छुछ ठोग वार्णाका श्रवण फरके भी सच्ची वाणी नहीं सुन सकते । परन्तु जैसे कामसपन्न भार्या सुन्दर वख्र पहनकर पतिके' सामने अपनी तनु प्रकट करती है, वैसे ही इस वैयाकरणके सामने यह वाणी अपनी तनु प्रकट करती है।” (ऋ. स. १०७१४ )। म्लोकका पदश- स्पष्टीकरण --- कोई व्यक्ति अवलेकन करके भी वाणीकों पूर्णतया नहीं जानता, वैसी कोई सुनकर भी उसका सच्चा श्रवण नहीं करता” | म्लोकका यह पहला आधा भाग व्याकरणका अध्ययन न क्यि इए व्यक्तिकों टदषय करके लिखा गया है। “ उतो त्वस्मे तनव विससे * इस अगले आधे मागमेंसे * तन्व बिससे * अत तनु अकट करती है । ' जायेव पत्य उसती सुपासा. * इस जअगडे अर्थभागमे उपभा देकर अर्थ स्पष्ट किया है-- जिस प्रकार प्रेमसुक्त भार्या १९. क्योकि न्याररणका अध्ययन न दो, तो उसके कानोंमें केवठ शब्द पदने सानसे उसके सच्चे भमेका ज्ञान न दोनेके कारण उसका व श्रदण पशुपक्षियोंदी तरद निरयक सिद्ध दोता दे।




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