वैदिक व्याकरण भाग - २ | Vedic Vyakaran Bhag 2

Vedic Vyakaran Bhag 2 by रामगोपाल शर्मा - Ramgopal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१४ ) , नूतकालचाचक अर तथा भाद झागम ४८ जे ७ ए० में इप “चाहना” से ऐस्छेंद , उद (पा० उन्दी) “गीला करना” से सौनत्‌ , कऋषध्‌ “समृद्ध होना” से आध्नौत्‌ । इस के श्रतिरिक्त ऋ० में निम्नलिखित नकारादि, यकारादि, रेफादि तथा वकारादि धातुद्रों के अ्रज्न से पूर्व भी आठ आगम मिलता है ; यथा-- नद्य, “पहुंचना” * से आनंद” (लु० प्र० पु ए०); युज्‌ “सजोतना” से आयनक (लड प्र० पु ए०), श्षार्युक्त (लुल प्र० पु० ए०), आर्युक्षाताप् (लु० प्र० पु० द्वि०); रिचू “खाली करना” से शारिंणकू (लड़ प्र० पु० ए०). मरिक (लु० प्र० पुर ए०); व ' 'आाच्छादित करना” से आावर (लु० प्र० पुर ए०); व. 'स्चुनना”” से आवुणि दल उ० पु० ए०); बृजू ' हटाना” से आाद्रणक्‌ (लड़ प्र० पुर ए०); व्यघ्‌ “ बींधना” से आविध्युत्त (लड़ प्र० पुर ए०) । इस सम्बन्ध में यह तथ्य विशेषतया उल्लेखनीय है कि आनद तथा आवर को छोड़ कर शेष रूपों का आदि क्षा पपा० में हस्व कर दिया जाता है और अुयुनकऋ , शर्युक्त तथा अविध्यत्‌ में संहिता में भी लट् आगम मिलता है । चहुत से वैदिक रूपों में अट या आंदू आगम का लोप मिलता है*; यथा ऋ० के लगभग २००० रूपों में आगम का लोप और लग- भग ३३०० में इस का यथोचित प्रयोग मिलता है । इन आगमरदित रूपों में भाधे से अधिक रूप लुड के है । अ० में आगमयुक्त रूपों की तुलना में आगमरहित रूप आधे से भी कम हैं ओर इन में से लगभग ८० प्रतिशत आगमरहित रूप केवल लुड के है । इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि सभी आगमरहित रूप भुतकालवाचक नहीं है। कऋ० के आगमरहित रूपों में से लगभग आधे रूप भूतकाल- वाचक और आधे रूप विधिमूलक लकार (एपफुंण्णलरंए्छ) के माने जाते हैं। और इन में से लगभग एक-तिहाई विधिमूलक रूप निपेघ- वाचक निपात सा के साथ प्रयुक्त होते हैं । अ० में आगमयुक्त रूपों की तुलना में आगमरहिंत रूप एक-तिहाई से भी कुछ कम हैं और लगभग €० प्रतिशत से अधिक आगमरहित रूप विधिमलक हैं । इन सप्तमो'ध्यायः




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