कठोपनिषद् के रहस्य | Kathopanishad ke Rahasya

Kathopanishad ke Rahasya by स्वामी कृष्णानंद सरस्वती - Swami Krashnanand Sarswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ कठोपनिषदु के रहस्य प्रथम दिन श्रापकी सन्तति का शझ्ाहार किया 1” दुसरे दिन क्या खाया ?' “प्रापके समस्त पथ तथा घन 1” श्रौर तीसरे दिन ?' '्रापके समस्त पुण्य कमें ।” अरे ! यह कया, यह तो बड़ा अनथे हुआ '--कहते ह 'यम श्रन्दर जाकर तुरन्त पवित्र जल ले आ्राये, उस सम्माननी अ्रतिथि को पूर्ण कुम्भ भेंट किया, उसके चरण प्रक्षालित कि श्रौर बैठने को झासन दिया । इन तीन दिनों मैं झ्नुपस्थि रहा--इसके लिए क्षमा करने की कृपा करें तथा श्रपने छुभ गमन का उद्देश्य बताएं । मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकट हूँ ? तुम तीन दिन भूखे रहे; भरत: इसके बदले मुझसे ती 'बर माँग लो । प्रिय बत्स, सेरे कारण तुम्हें सेरे द्वार पर भुर रहकर सीन दन जो कष्ट उठाना पड़ा, उसके उपलक्ष्य में : तुम्हें तीन वरदान देता हूँ । माँग लो।' ठीक है । आप मुझे वरदान माँगने को कहते हैं तो एव नर यही दीजिए कि जब मैं संसार में पुन: लौटटूं तो मेरे पित मुे पहचान लें श्रौर सुक पर क्रोध न करें । 'एवमस्तु' यम ने कहा, “संसार में लौटने पर तुम्हारे पित तुम्हें क्रोध की श्रपेक्षा स्नेह से श्रपनायेंगे । श्रव दूसरा वर माँगो ।' 'मुक्के वैदवानर श्रण्ति का रहस्य , वताइए जिसमें में श्रखिल विद्व की उत्पत्ति हुई है ।'




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