भक्ति योग - साधन | Bhakti Yog - Sadhan

Book Image : भक्ति योग - साधन  - Bhakti Yog - Sadhan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती - Shri Swami Shivanand Sarasvati

Add Infomation AboutShri Swami Shivanand Sarasvati

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भक्तियोग-साधन मेरे तो गिरधर गोपाल, दुसरो त कोई ।' हरि-्रेम में दौव! मीरा को कया कोई पूरी तरह से समझ सकता है ! सम्पत्ति की श्रमिलापा सै, पुत्र की कामना से, दःख़-निर्वा या रोग-मुक्ति के हु से ईश्वर की भक्ति करना सकास्या भी है । सकाम भक्ति क्रमश: निंष्काम सक्ति में बदलती है । प्रह्मा तो प्रारम्भ से ही मिष्काम भक्ति करता था । घर वकुमार केवा सकाम भक्ति करता था । प्रारम्भ में श्रपनी साता' के कां श्रतुसार राज्य हस्तगत करने की कामना से वह वन में गया लेकिंग हुरि-दर्शन हो जाने के वाद उसकी भक्ति निष्काम वन गयी । उसकी सारी कामनाएँ नष्ट हो गयीं । कुछ समय के लिए ईदवर से प्रेम करना श्रौर कुछ समय के लिए पत्नी, पुत्र, घन-सम्पदा से प्रेम करता व्यभिचारिणी भक्ति है। ध्यान रहे कि संदा-सदा के लिए एकमात ईश्वर से प्रेम अ्रव्यभिचारिणी भक्ति है। सात्विक भक्ति में भक्त के श्रस्दर सत्वगृण की प्रधानता होती है । वह ईर्वर को प्रसत्त करने के लिए, ग्रपनी वास गानों कौ समाप्त करते के लिए तथा इसी प्रकार के प्रन्य सदुददेश्यों के लिए ईश्वर की उपासना करता है। थे तीनों प्रकार बी मक्तियाँ गौण भर्ति हैं। दर रजोगूण की प्रवलता होती राजस भक्ति में भक्त के शन्द जि ? । भक्त सम्पत्ति, घन, नाम श्रोर कीति के लिए ईय्वर के प्ति. करता है । तामस भक्ति में तमोगुण प्रवर्ल होता हैं! भक्त मं हिसा। व. श्रहूमाव, असु्ा/ क्रोध की गुण होते हैं । श्रपने भरत हारसंहार करने के लिए. ग्रौर श्रविहित मागें से सिसी १




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now