सलीब ढोते लोग | Salib Dhote Log
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.54 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सतीव ढोते लोग | १४५
गांव में या किसी बाहरी भादमी से इन गललों की चर्चा मत करना ।
लोग मुझसे बहुत जलते हैं ! इसीलिए मैं छिपकर चुपचाप व्यापार करता
हूं। और भी कई बातें हैं जो कल इत्मीनान से वताऊंपा, समझे 7”
“अच्छी बात है ।”
“ग्तो वचन देते हो ? यही पूछने मैं वपपस आया हूं ।”
“हां, हां, आप आकर आराम कीजिए ।”--जग्यू ने तपाक् से, अन-
जाने ही कह दिया । 'बिसेसर बाबू जैसे जमीदार ने, आज पहुली बार उससे
अनुरोध किया है, उससे इस तरह सगा होकर बात की है, इस उत्साह
से, जग्गू अपने अस्तित्व के प्रति चेतन हो उठा ! विसेसर सिंह ने निलिप्त
भाव से इजिन की रोशनी की मोर देखते हुए कहा--
“मालगाड़ी अब तक खड़ी है । मालूम पड़ता है बिल्कुल निकट खड़ी
है।” विसेसर सिंह टार्च जलाकर कुछ देर तक इंजिन और गुमटी के थीच
की दूरी नापने का उपक्रम करने के बहाने टार्चे की रोशनी को इंजिंस की
तरफ फेंकते रहे और फिर अचानक ही वोल उठे--
“अच्छा, भव चलता हूं, जग्यू भाई ! कल मिलूंगा 1” बिसेसर सिंह
तेज रफ्तार में, गांव की ओर न जाकर स्टेशन की भोर चले दिए। क्षण-
भरवाद ही मालगाड़ी के इंजिन ने सीटी दी और उसकी रोशनी से, पानी
में भीगी हुई रेत की पटरी चमक उठी; मानों अन्धकार के बीच रोशनी
की राह निकल आई 1 पूरब में आकाश खुलने लगा: हर... मुर व पुर वृक्षों की
कंची-नीची कतार अस्पष्ट हो उठी । इर्जिन की'्तेज की शत, सु, गु्तिमिस्की
आंखें मद्धिम पड़ गईं ।
न
“किसी चीज की जरूरत है ?”***जग्यू बरामिदेंपरण्स्ट होकर,
आगन्दुक नारी के नोकर से ऊंची लाधाज में पूछा 1 नौकर मगन के उस
पार, सामने वाले वरामदे पर झाड़ दे रहा था । वह कुछ बोले, तब तक
नारी स्वयं कोठरी से बाहर निकल आई ओर बहुत ही संकोच से बोली--
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