प्रेमह - विकार | Premh - Vikar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.9 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कविराज रामरक्षा पाठक - Kaviraj Ramaraksha Pathak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“'प्रभूतं वश 5 विलें वापि क्वचिद्वोभयकक्षणमू ।
प्रायशश्चेर्ख्र वेन्पुत्र॑ तदा मेड विनिदिशेद् ॥”'
प्रभूत ओर शआतिल ये दो प्रधान उक्तण प्रमेह के हैं । हमें
यह देखना है कि मृत्र की ये दो असाधारण अवस्थाएं किन २
कारणों से होता हूं। प्रथम प्रभूत अर्थात् मूत्र की अधिकता
जिन कारणों से हाती है उनका बणन किया जाता है ।
प्रभूतमूत्र के कारण--
(१) अधिक जलपान बा जलीयांश वाले पदाथ का भक्ण।
(न) मचुमेहू ( 120१८ 11९]10प5 )
(३) जीग्य केन्द्रस्थ वचुक्कशोथ ( (पाएपट . प्रासा9ि 0181
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(४) रक्तभाराधघिक्य ( पाए, ते रटपनपााट है
(छ) पिट्यटरी बॉडी के रोग ( 1)1868565 0. फू (पा एक्ा एक,
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(६) मूत्र श्ौषधों का सेवन |
(७) बहुमूत्र ( 12घ96065 पड़ी |जतेपड
( ८) कक पेघारा,
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(३१० )ज्वरान्ते मोह ( (०0 रणो5एटाए९ पपटा' दिएटा' )
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