बीसवीं शताब्दी के महाकाव्य | 20th Shatabdi Ke Mahakavya

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Book Image : बीसवीं शताब्दी के महाकाव्य  - 20th Shatabdi Ke Mahakavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हतीय श्रध्याय श्रव्य कांब्य भारतीय समीक्षापद्धति में श्रव्य काव्य के तीन भेद किये गये हूं - गद्य, पद्य तथा चम्पु । गाधुनिक काल में पद्य में दो प्रकार की रचनाये देखने को मिलती है--- प्रबन्ध तथा निर्बन्ध । प्रवन्ध के दो भेद किये गये है--महाकाव्य तथा. खण्ड- काव्य । महाकाव्य का क्षेत्र विस्तृत होता है जिसमें जीवन की श्रनेकरूपता दृष्टिगोचर होती है । खण्डकाच्य में पूर्ण जीवन का विवेचन करके केवल एक ही घटना को मुख्यता दी जाती है । निर्वन्ध कली के श्रन्तर्गत मुवतक, गीत तथा प्रगोत तीन प्रकार की रच तायें देखी जाती हैं । यद्यपि हमारे साहित्य में छन्द-बद्ध मुक्तक श्रौर गीतों का प्रचलन प्राचीन काल से चला श्रा रहा है, किन्वु प्रगीतों की रचना इंगलिश काव्य के लीरिवस (1- ह 7 0 5) के ढंग पर हिन्दी में होने लगी है 1 तीसरा विभाग चम्पू है जिसमें गद्य एवं पद्य दोनों प्रकार का मिश्रण रहता है, जैसे गुप्त जी की “'यज्नोधरा” 1 महाकाव्य के लक्षण शास्त्रीय परम्परा--महाकाब्य के लक्षणों का वन दण्डी ने काल्पुररार में किया है, किस्तु साहित्यदर्पणाकार विश्वनाथ ने इसका विस्तार हैं 9 वर्णन किया है । वह इस प्रकार है”- कि १. सर्गवन्धो महाकाल्य॑ तत्रेको नायक: सुरः । सदंश: चत्रियों वापि थीरोदात्तयुणान्वितत: ॥ एकर्चशभवा भूपा: कुलजा वहवोधपि वा | ूंगारवीरशान्तानामेकोउद्ली रस इष्यते 1 श्रंगानि सर्वेअपि रसा: सर्वे नाटकसन्धय: | इतिदासोद्भवं दत्तमन्यद्ा सज्जनाश्रयस्‌ हा प्त्वारस्तस्य वर्गा: स्युस्तेष्वेक॑ च फर्ल भवेत्‌ 1 ादी नमस्क्रियारीरवा वरतुनिर्देश एवं वा ॥ क्‍्वचिज्निन्दा खलादीनां साय शुखुवणुतम एकयृत्तमये: पर्य रवसामे5न्यद्वरापी: 1! लाति स्वत्पा नातििं दीपा सर्गा झाधिका इद 1 की नानावृत्तसव: क्वापि सर्ग: कश्चन टश्यते ॥ (शेप ध्रगले पृष्ठ पर)




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