कामायनी में शब्द शक्ति चमत्कार | Kamayani Me Sabad Shakti Chamtkar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.62 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ० विमल कुमार जैन - Dr. Vimal Kumar Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कॉमायनी नें लाक्ष रिक प्रयोग श्द
(३) 'कोरक' ध्ीर 'शिविल सुरकि' का थमझ: लदयार्थ है 'कियोरी' एवं
*थिथिल सुगन्घित निवास यहाँ भी उपयुक्त लक्षणा है ।
(४) 'जब लिखे थे तुम सरस हंसो' इसमें 'लिखते थे' और 'हूसी'
लाक्षणिक पद हैं, जिनका कमदा: अर्थ है विफसित करते थे तथा 'उल्लास' । शसी
प्रकार 'फूलों' से तात्प है 'युवतिएं' एवं 'गरनों' से 'सचुर ध्वनियाँ' ।
यहाँ भी 'प्रयोजनवतती गीरणी साध्यवसाना लक्षण है 1
(५६) 'शिव चिश्रकार' से ध्रश्िप्राय 'स्रशेध प्रेमी-युगल' श्ौर पलोवन की
सांखों' से 'योवन' भी है ! यहाँ भी उपयुवत लक्षणा है ।
(७ पद) 'लतिका घूंघट से चितवन की' में 'ललिका' का लक्ष्या्थ है
ग्युव्ती' । सादृदय के बार आरोप होने से गहाँ भी चटा लक्षणा है 1 दे
(१०) “शो नील श्रावरण जगती के' इस में 'नील श्रावरण' तादथ्य सम्चन्प
के कारण शकाण के लिए प्रयुक्त ठुम्रा है। प्राकाश का उल्लेप न होने सधा
अजहत्स्वार्था होने से यहां “प्रयोजनवती शुद्धा साध्यवसाना उपादान लकणा' है ।
(११) 'चलचक्र वरुण का ज्योति भरा' इस सम्पूर्ण परद्यांध का लदंयाप है
“चन्द्रमा । यहाँ भी उपयुक्त लक्षणा है । दे
(१९) नवनील कुल्ज हैं भीम रहे' इसमें 'नी न कब्ज से तात्पय “घ्राकादा'
भी है। यहाँ सप्ददय के कारण श्ारोप हाने तथा श्राराप का उल्लेस न होने से
*प्रयोजनवतती गोणी साध्यवसाना लक्षणा' है ।
“क्सुमों फी कथा न बंद हुई में 'कुमुमों' का लक्ष्याथ॑ं हैं 'तारों' । यहाँ भी
उपयुक्त लक्षणा है 1 -
(१३) 'इस इंदीवर से गंध भरी' में 'इंहीवर' का लक्ष्यार्थ 'श्राकाश है।
यहाँ भी उपरिलिखित लक्षणा है 1
(१४) बनता हैं प्राणों की छाया' में 'छाया' पद लाक्षणिक है । इसका
सात्पयं है 'शान्तिप्रदायिनों वस्तु । यहाँ भी उपयुक्त लक्षणा है ।
(१६) 'श्राकाशरंघ' का लक्ष्याय “तारे श्रीर “'मालोक' का “तारे एवं
*. संस्ट्रमा' है ।
्
के, ४ पद्य (काम सगे )--कामायनी, पृष्ठ ६ ३
६ (वही)--वहीं, पृष्ठ ६४
७ (वही) वही, पृष्ठ ६४
०, ११, १२, १३ (वही )-वही, पृष्ठ ६५
१५, १६ (नदी )--वही, पुप्ठ ६६
User Reviews
No Reviews | Add Yours...