कामायनी में शब्द शक्ति चमत्कार | Kamayani Me Sabad Shakti Chamtkar

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Kamayani Me Sabad Shakti Chamtkar by डॉ० विमल कुमार जैन - Dr. Vimal Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कॉमायनी नें लाक्ष रिक प्रयोग श्द (३) 'कोरक' ध्ीर 'शिविल सुरकि' का थमझ: लदयार्थ है 'कियोरी' एवं *थिथिल सुगन्घित निवास यहाँ भी उपयुक्त लक्षणा है । (४) 'जब लिखे थे तुम सरस हंसो' इसमें 'लिखते थे' और 'हूसी' लाक्षणिक पद हैं, जिनका कमदा: अर्थ है विफसित करते थे तथा 'उल्लास' । शसी प्रकार 'फूलों' से तात्प है 'युवतिएं' एवं 'गरनों' से 'सचुर ध्वनियाँ' । यहाँ भी 'प्रयोजनवतती गीरणी साध्यवसाना लक्षण है 1 (५६) 'शिव चिश्रकार' से ध्रश्िप्राय 'स्रशेध प्रेमी-युगल' श्ौर पलोवन की सांखों' से 'योवन' भी है ! यहाँ भी उपयुवत लक्षणा है । (७ पद) 'लतिका घूंघट से चितवन की' में 'ललिका' का लक्ष्या्थ है ग्युव्ती' । सादृदय के बार आरोप होने से गहाँ भी चटा लक्षणा है 1 दे (१०) “शो नील श्रावरण जगती के' इस में 'नील श्रावरण' तादथ्य सम्चन्प के कारण शकाण के लिए प्रयुक्त ठुम्रा है। प्राकाश का उल्लेप न होने सधा अजहत्स्वार्था होने से यहां “प्रयोजनवती शुद्धा साध्यवसाना उपादान लकणा' है । (११) 'चलचक्र वरुण का ज्योति भरा' इस सम्पूर्ण परद्यांध का लदंयाप है “चन्द्रमा । यहाँ भी उपयुक्त लक्षणा है । दे (१९) नवनील कुल्ज हैं भीम रहे' इसमें 'नी न कब्ज से तात्पय “घ्राकादा' भी है। यहाँ सप्ददय के कारण श्ारोप हाने तथा श्राराप का उल्लेस न होने से *प्रयोजनवतती गोणी साध्यवसाना लक्षणा' है । “क्सुमों फी कथा न बंद हुई में 'कुमुमों' का लक्ष्याथ॑ं हैं 'तारों' । यहाँ भी उपयुक्त लक्षणा है 1 - (१३) 'इस इंदीवर से गंध भरी' में 'इंहीवर' का लक्ष्यार्थ 'श्राकाश है। यहाँ भी उपरिलिखित लक्षणा है 1 (१४) बनता हैं प्राणों की छाया' में 'छाया' पद लाक्षणिक है । इसका सात्पयं है 'शान्तिप्रदायिनों वस्तु । यहाँ भी उपयुक्त लक्षणा है । (१६) 'श्राकाशरंघ' का लक्ष्याय “तारे श्रीर “'मालोक' का “तारे एवं *. संस्ट्रमा' है । ्‌ के, ४ पद्य (काम सगे )--कामायनी, पृष्ठ ६ ३ ६ (वही)--वहीं, पृष्ठ ६४ ७ (वही) वही, पृष्ठ ६४ ०, ११, १२, १३ (वही )-वही, पृष्ठ ६५ १५, १६ (नदी )--वही, पुप्ठ ६६




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