मुद्रा भाग 1 | Mudra Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रद.) सहज ही पूरा-प्रा जान दो जायगा श्रोर तमी दम मुद्रा के चार्स्ताविक्र सदत्व को समभा भी सकते हैं ! की मुद्रा के द्वारा हो व्यापार, उद्योग एवं कृपि की उन्नति समय हुई । मुद्रा दौर मानव की सभ्यता का पक ऐसा पारस्परिक संबध है जिससे यह कददना कठिन हैं कि मुद्रा के कारण सम्यता का पिकास हुआ्रा या. सभ्यता के कारण मुद्रा करा विकास हुआ । मुद्रा के दोप (फस४ 0 छवेणाटफ)--मुद्ा की श्रच्छाइयों काज वर्सुन ऊपर किया जा चुका हैं | अच्छाद्यों के साथ मुद्रा में कुछ दोप भी” है | वे इस य्रकार हैं -- न नली (१) मुद्रा होने से उधार लेन-देन मे सहापरता मिलती है पर उधार सिंलने | 4५ 1 चन र श्रोर - के कारण लोग [रिजूल स्थ्च व जाते हैं योर झ्पनी श्राय से झधिक खच करने लग जाते हैं । (२) मुद्रा के कारण सम्पति के वितरण में झसमानता श्र विपमता ' पी हू च पस्टफिडेपसणरााण श्राती है । वतंमान काल का पू'जीवाद इसी का परिणाम है| यांदे मुद्रा न होती तो प्रत्येक व्यक्ति को वस्तुएं बनानी या पैदा करनी पड़ती श्र पूं जीपति समाज का शौपण न कर पाते । (३) सदा का मूल्य प्ररत: स्थायी न रहने के कारण समाज को नदी हानि होती है । मुद्रा के मूल्य में होने वाले मारी-मारी उतार-चढ़ाव व्यापार तथा उद्योगों को प्रायः नष्ट भी कर डालते हं। लडविंग वॉम नामक मुद्राशास्री के श्रनुखर सुद्रा के कारण दी समाज में द्नेकों नैतिक सपा मनन सन कृत्य होते हैं । (४) मुद्दा की एकाधिकार, विशाल्ल अतर्गप्ट्रीय व्यापारिक सघो तथा महायुद्धों का कारण है | मुद्रा झतर्राष्ट्रीय देप-मावना का कारण बनती है तथा श्रनेकों श्रन्यायों को नढ़ावा देती है | पर मुद्दा के लाभ उसके दोपों से कहीं श्रधिक महत्वपूर्ण हैं । यदि प्रयल किया जाय तो मुद्रा के इन दोपों में से कुछ दोपों को दूर किया जा




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