अन्ना पासवान | Anna Paswan

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Anna Paswan by मनमोहन सहगल - Manmohan Sahagal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मना पासबान 15 ए-आम में भाया था, बिठु उसके नजराने को स्वीकार करते हुए शाहजहीँ ने इतना ही कहा, यान साहब अभी तो आप कुछ दिन सकेंगे । नागौर रियासत वी बुछ शिकायतें दरवार में आयी हैं, फिर बभी उन पर चर्चा बरेंगे। खिय्धणाँ का रंग उड गया दो क्यो मिया, याँ साहिब का बुछ बाम बना ”” नागौर रियासत वे मुख्य बाजार की मस्जिद की आट में रशीद न फन को रोककर पछा । *जभी कया कह सकू हूँ ! मालूम नहीं घोड़े पर जात हुए खान ने किस पुतली नचाने वाले के साथ उस महताब को देख लिया होगा । इधर शहुर का कौई कोना मैंन नहीं छोड़ा, पुतली बनाते मचाने वाले ता सभी घर तलाश लिए है। लगता है वे तमाशगीर कोई वाहर से आये होंगे ।' पयह भी हो सकता है हम तो भई तलाश करना होगा । खान का गुस्सा बड़ा जालिम है पता नहीं कब फट पड़े । ये पुतलीगर तो पुरे राज पूताने मे फैन हुए हूँ ।' अरे हा याद जाया । परसा जब मैं यान वे लिए जगली खरगोश ढूढन पूव की ओर दूर निकल गया था, तो वहां पचासा खेम मेर॑ देखन में आय थे | पता किया ता मालूम पडा कि खानावदोश राजपुतों वा एव दल वहां टिवा हुआ है। उनम भी ता पुतलीगर हो सबते है'--रशीद ने स्मृति- पटल पर जोर दते हुए स कहा । “खूब बताया 'रशीद मिया ; फलन ने एहसान मानते हुए कहा मैं कल उधर जाकर भी पता करूंगा। यह अपन खान साहिब भी बडे रसिया भादमी है । उडती चिडिया के पर गिनते है--औरत दी सो गध लेकर नस्ल बता देने वाले हैं । अमाँ, कया नक्शा दिया है। एक ही नजर में पहिचान सकता हूं कि खान की ओआख किस पर होगी । अच्छा मिया लगे रहो । मेरी मदद की जरूरत हो तो बता दना खुदा हाफिज , कहूत हुए रशीदे खान कं महल के मुख्य ह्वार की ओर चल




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