संत - काव्य का दार्शनिक विश्लेषण | Sant Kavya Ka Darshanik Vishleshan

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Sant Kavya Ka Darshanik Vishleshan by मनमोहन सहगल - Manmohan Sahagal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिपय-प्गेश ११ हर सकता हो स्वामागिक भी था और अावश्यक मी । सम्मबता इस्ही परिस्शितियों में बरायूत होकर भारत म मातादि के निपेशात्मक मार्गों के उपरास्त तास्वरिह-सामनों दो प्ाहुुता ब३ यई । लद॒य दोनों कर एप था परन्तु साग बिरोधी--दांनों सम्यानु भूत्रि के अम्बपक थे परन्तु एश्र मिवृत्ति मार्य पर असन बासा तो दूसरा प्र्गत्ति पर एड मार्सा मौर परमास्मा के बीच क परें को बिदीण करने मे मस्‍या श्खग बाना दा बूसरा उसी पद को सिसत का सापम बसाने डी झुस्पता करने बाला ! तारिशिक विचारभारा हिन्दुओं और बोदों दांतों में प्रचतित हुई | बौद्ध तो पहल से हो अ्रभूतति-सात पर बड़ रहू घ मत बौऱ तारियदों का उदम पूर्व-साव में मान बाशी पिराडट के कारस ही माना बाना चाहिए। हियू धारितरक एक कछ्तिई को जूपरी कठिसाई से शिसजित करते के स्वप्त से रहे व । के अपने भिन्न सम्प्रदाों और दिचार-पद्धविरों को लिए स्वापेक्षित एक ही सध्य सक्रिषदानरद की प्राप्ठि या पूर्ण शिव में मित्र जाने के मिप्र मासय ढू इ रहे पे । सम्मगत इसीलिए प्रमप्ताप मुलोप/्भाय ने लागििह--पदयरति के डिपय में 'कम सार्पेष्या भोर मोटी तिरपेंकवा शबस् प्रषाप किए हैं । हिल्दू तस्‍्तों शी पांच श्रेषियाँ है--शत्र माक्त दंप्णद याशपर्य तपा सौर । इनमें भी शेंत्र मौर साक्त ढी गणना मुम्प तग्गों में कोठी है। समय-समय पर स्थार्षी विचारों इांग् किसौ भी विभारबारा में जो दिलाया तसा भताजश्यकजरदों का सम्मिमस हो जाता है यदि उसकी मबह्ेशना रत तुए देखा जाए तो तम्तर भी उपसिपरों की रहस्पमयी अनुपम सत्ता जी छोर संकत करत दील पड़ते हैं। डहू सत्ता हाग्करिषर-्मापा भे संब्चिदाशन्द कहुलाई जिसके वो प्ठ शिग और शक्ति हैं। यहाँ शिबर की तिउटठा सारिय के पुरप की तरह शक्ति के जिए प्रएक है । डा» अजमोहस गुण हारा उठरित एर्र्पी में ये बोसों रूप अविभेध भौर मवि जारथ हैं। हस्त्र में जि ये चश्म सत्य माना सया है छोर शक्ति को उसदी सत्ता गा मूस-त्य 1 उप्में हु त भा माष नहीं वरन्‌ मधन्यता है अमिप्तता है 1९ मचरशातर मंग्रार क्री उत्पत्ति मूस प्रह्मति या परामक्ति माया दारा लाइ ओर बिन्दु (करजॉअरड) बी रबता क पश्चात स्वममेज होती चली जाती है। वस्मानुसार जीन परश्नु हैं और संसार के पाश मे बसपा है । उसे शिव शसना है ओर बह प्रदृत्ति मार्य मे ही सम्भव है। दाहरी बासनाएँ बब उताशीकृत डो मस्वर्मूखी हो एाती हैं तो मनृप्य के घिए बद्धोजिय का सार्ग पुपता है । 1 पश्ाएब ब३ 2 ५३) ० १०बरोए4ए छा... (पता सेब पाछतर एलटाआ) म्रशचफएायं॥ --11८ वाया सत्यंफदुद ० 100.) रे कप्याथ साजनॉरि---प० गोपीताब काशिराज पू७ इफह |




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