राजस्थान एवं गुजरात के मध्यकालीन संत एवं भक्तकवि | Rajasthan evam Gujarat ke Madhyakalin Sant evam Bhakt Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२० राजस्थान एवं गुजरात के सध्यकालीन घ्रस्तुत परिच्छेद में हम इन दोनों प्रदेशो में प्रचलित विभिन्‍न सम्प्रदायों के सम्बन्ध मे श्रलग-अलग विचार करेगे । सुविधा के लिए भक्ति के समस्त सम्प्रदायो को जो हमारे आलोच्यकाल में यहाँ प्रचलित थे हम सगुण तथा निगुर के दो विभागों मे विभाजित कर सकते है । दादू पंथ -- इस पंथ के प्रव्तक संत दादूदयाल थे राजस्थान एवं गुजरात दोनी से इनका निकट सम्बन्ध रहा है इस सम्प्रदाय का नाम पहले ब्रह्म सम्प्रदाय अथवा परवब्रह्मा सम्प्रदाय था । किन्तु कालान्तर मे दादू के नाम से ही सम्प्रदाय प्रसिद्ध हुमा दादू के जीवन चरित्र के सम्बन्ध मे विस्तृत विचार कवि परिचय के प्रकरण मे किया गया है इसलिए यहाँ केवल उनके सम्प्रदाय एव सिद्धातों पर ही ध्रकाश डालने का प्रयास करेगे । परन्तु दादू के जन्मस्थल के विषय मे विद्वानों मे बहुत मत्तभेद है इसलिये उसका किचितू विचार यहाँ करना आवश्यक प्रतीत होता है । पंडित सुधाकर द्विवेदी ने इनका जन्मस्थान जौनपुर बतलाया है जब कि हिंदी के अधिकाश दिद्वानों के विचार से इनका जन्म गुजरात के अहमदाबाद नगर मे हुआा था । डॉ० रामकुमार वर्मा पं० पशुराम चतुर्वेदी तथा डॉ० पीताम्वर दत्त बड़थ्थ्वाल प्रभ्नति विद्वानों ने उनका. जन्मस्थान अहमदाबाद ही स्वीकार किया है । गुजराती के प्रसिद्ध विद्वान्‌ श्री के० का० शास्त्री ने भी दादू का जन्म अहमदावाद होना स्वीकार किया है। दादू के दिष्य जनगोपाल ने दादू के जीवंग चरित्र मे भी इस वात की पुष्टि की है दादू पंथ के झ्रनुयायी भी उनका जन्म-स्थान अहमदाबाद ही मानते हैं । एक किंवन्दती के श्रमुसार वे साबरमती मे बहते पाये गये थे श्रौर लोदीराम नामक ब्र हाण ने उन्हे ले जाकर पालन पोपरण किया । परन्तु डा० मोतीलाल मै . रिया ने इनके श्रहमदावाद मे जन्म लेने की वात को भावुक भक्तों की कल्पना कहा है । उनके मतानुसार दादू का जन्म स भर अथवा उसके झ्रासपास किसी ग्राम मे हुआ है । दादू की वाणी में राज- स्थानी के साथ साथ गुजराती के रूप भी मिलते हैं । श्रत गुजरात से इनका सम्बन्ध होने की संभावना नितात श्रसंभव नही हो सकती । सारांदा यह है कि दादू के जीपन का गुजरात तथा राजस्थान दोनों से घनिष्ठ सम्बन्घ रहा है चौदह वर्ष की गवस्था मे ही ये राजस्थान की श्रोर चले गये तथा वही एक संत के रुप में प्रसिद्ध हुए । १- राजस्थान का पिंगल साहित्य--डा3 सोतीलाल मंनारिया प्ृ०-१५८३




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