बन्धन महासमर भाग 1 | Bandhan Mahasamar Vol - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
469
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वनाने की चिन्ता नहीं होती, राजाओं को होती है”संसार से विदा होते हुए: अपना
राजपाट छोड़कर जाने का दुख सह्य नहीं होता राजाओं को | स्वयं तो काल से
लड़ नहीं सकते, तो यह मार्ग ढूँढ़ा है उन्होंने । इतना सन्तोष ती रहे कि धन-सम्पत्ति
अपने पुत्र के हाथों में छोड़कर आये हैं”शायद इसीलिए देव्रत को अपने वंश
की चिन्ता नहीं है, शान्तनु को है”'तो क्या शान्तनु राजा हैं और देवव्रत संन्यासी ?
“देवव्रत का मन हुआ कि जोर से हँस पढ़ें”
पर सहसा ही देवब्रत का मन दूसरी ओर चल निकला ।”देवब्रत और शान्तनु
के वंश में तो न कोई भेद है, न विरोध । देवब्रत की वंश-परम्परा भी तो चक्रवर्ती
शान्तनु की ही वंश-परम्परा है।”“तो फिर वंश की रक्षा के लिए पिता 'देवब्रत का
विवाह करने की सोच रहे हैं क्या ? #.. , हिऊँ के
देवब्रत विचित्र मनःस्थिति में पड़ गये थे। अपने विवाह के नाम से ही
उनके सामने एक विराट प्रश्न-चिक्न आ खड़ा होता था। पिता ने ठीक कहा था
कि जब माँ उन्हें छोड़कर चली गयी थी तो उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया था।
पर दूसरा विवाह क्यों नहीं किया था ?-इसलिए कि ये अपनी स्थिति से सन्तुष्ट
थे या”शायद माँ के साथ सम्बन्धों के कारण ही”अपनी पत्नी के प्रति आसक्ति
के कारण या अपनी पतली के प्रति वितृष्णा के कारण ?”
उनके पिता ने माँ को गंगा-तट पर देखा था और तत्काल मुग्ध हो उठे
थे। उनके विषय में पिता ने कोई खोज, कोई पूछ-पड़ताल नहीं की थी। वह
कौन थी ? किसकी बेटी थी ? कहाँ रहती थी ? उसके सम्बन्धी और अभिभावक
कौन थे ? कहाँ थे ? उसके साथ विवाह के लिए किसकी अनुमति की आवश्यकता
थी ?”पिता ने कुछ नहीं पूछा था”“कुछ जानना नहीं चाहा था ?”रक्त की शुद्धता
के लिए दृढ़ आग्रही आर्यों के इस सम्राट ने माँ के कुल-गोत्र को जानने का तनिक
भी तो प्रयत्न नहीं किया था।”आर्य लोग नारी को स्वतन्त्र नहीं मानते । मनु
कहते हैं कि नारी अपने पिता, पति अथवा पुत्र के अधीन होती है; किन्तु सम्राट
शान्तनु ने तो कभी जानना नहीं चाहा कि वे किसके अधीन थीं ।”'माँ के सौन्दर्य
गत देखकर पिता इतने अभिभूत हो गये थे कि उन्होंने उनसे तत्काल विवाह कर
या था।
पर यह दैहिक आकर्षण गृहस्थी का आधार नहीं बन सका ।”देवब्रतत के
मन को यह प्रश्न निरन्तर परशु की धार के समान काटता रहता है”'क्या मात्र
दैहिक आकर्षण गृहस्थी का आधार बन सकता है ? पर उन्हें कोई स्पष्ट उत्तर
नहीं .देता । प्रत्येक स्त्री-पुरुष एक-दूसरे की और देह के सौन्दर्य को देखकर ही
तो आकृष्ट होते हैं। पिता भी हुए थे। पर कहाँ चली यृहस्थी ? क्या साथ रहना
और सन्तानें उसनन करना गृहस्थी है ? शारीरिक आकर्षण में एक-दूसरे के साथ
वैँंधे रहना और चाहकर भी सम्वन्ध-विच्छेद न कर पाना तो यातना है”देवब्रत
को सदा लगता है कि यह शारीरिक सौन्दर्य तो फन्दा है”वहेलिये का जाल !
भोला पक्षी दाना चुगने के लिए आता है और जाल का पता उसे तब चलता
वचबन्धन / 17
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