भारतेश वैभव भाग 1 | Bhartesh Vaibhav Bhag 1
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.92 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ड्रीपें बह राज्य पान कर रहा था । वह घीर द महांपरवी था | कोषी
होने पर भी हिंतेवियों के बचनकों छुननेवाछा था. भरतके भागमतकों धुन.
पहिंछे बधपि उसने युद्धकी तैय्यारी सी फिर भी आादमें मंत्रीके समझा/
नेते समझकर मरतचक्रइटीकों मेंट बगैरद देकर उनकी सेवामें उपस्थित
हुआ । उसके बाद कई ब्य॑तर रानावॉको वदमें करके दिया ।
नमिराज मरतके छठी शाला हे । मरतचक्रवर्ति , मुझसे संपक्तिमें
बढ़ा 'होनेपर भी बंदामें बढा नहीं है इस गवेते मेंट व बहिन सुमद्रा
देवीको देनेके शमयमें भगत यदि हमारे घरमें भावगा तो देंगे नहीं तो
नहीं देंगे इत प्रकार उसने निश्वय किया था | फिर माता व बुद्धिसागर
के स्रमज्तानेसे भरतके, पासमें जाकर बहुत सजमसे छमदादेवीका विवाद
मरतके साथ किया। भरतने उसका सत्कीर किया । कविने ली पात्रंको
भी अच्छी तरह बणन किया है |
यधस्त्रतीदेवी भरतैशकी पृज्य माता थी पुत्रके प्रति माता का भत्यणिक
प्रेम व पु्नकी माताके प्रति श्रद्धा उनमें भादशेरुपसे थी । यशास्वतीदेवी
सदा. भाहमचितनके साथ. २. पुत्रके प्रति दितकामना
करती थी । भरठचकऋषतीकी ९६ इजार साणियांकी भक्ति साछुके प्रति
भनुरुरणीयव थी । दिग्विनयप्रत्थानके समय बहु भौर बेटको मातु्नीने
गाशिवादिके साथ नो समयो चित बचन कहे व मनन करने 'बोम्म
है। बहु्वोनें जो पुन' साधुक्ते दशन करने पर्यत कुछ नियम ग्रहण कर
छिया हे इप्लीसे उनके मक्ति वात्तसप व्यक्त होनाता है | -
कुपुमाजी भरतके ९६ ढलार लियोंमें अत्यधिक मीतिपात्र
थी बथपि भरतका प्रेम सगकेछिये समान था फिर भी उसके
गुणसे विशेष भनुरक्त था भरत उसे नाइरते नहीं बतराता था, फिर भी
कुछुमानीने नो तोतेके साथ जो सरससझाप किया भा एवं भरतकों भपने
घर बुझकर भोनन कराते समय 'लो सछाप किया उससे 'उनका प्रेम
ज््छी तरह व्यक्त होता है । - । “०.
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