भोजपुरी लोकगाथा | Bhojapuri Lok Gatha

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Bhojapuri Lok Gatha by सत्यव्रत सिन्हा - Satyvrat Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(थ) मगह का पान, बनारसी साड़ी, मिर्जापुर का लोटा, पटने की चोली भर गोरख- पुर का हाथी लाता है। लोकगायाओओं के वीर झ्नेक नगरों भौर गढों पर शक्रमण करके विजय प्राप्त करते है। इस प्रकार से हम लोकसाहित्य द्वारा नगर, नदी, किला, गठ श्रौर प्रसिद्ध व्यापारी केन्द्रों से परिचित होते हैँ । !लोकसाहित्य हमें समाज के श्रार्थिक-स्तर का भी विधिवत्‌ ज्ञान कराता है । लोकसाहित्य में साघारण ग्रामीण समाज का खानपान, रहन-सहन तथा रीविरिवाज इत्यादि का परिचय मिलता है । लोकगीतो की माता सोने के कटोरे में ही शिवुञ्रों को दूध भात खिलाती हूँ। नायिकाए दक्षिण की चीर, चन्द्रहार, वाजूवन्द झौर माँगटीका पहनती है । सोजन में वालमती चावल, मूंग की दाल, पूो, फू और छुत्तीस रकम की चटनी ही परोसा जाता है । इससे यह स्पष्ट होता दूं कि लोकसाहित्य के द्वारा समाज की आधिक झ्रवस्या से हम भमली- भावि परिचित हो सकते है । ? नुशास्न (अन्योपालोजी) के लिए लोकसाहित्य में झष्ययन की सामग्री _मरी पड़ी है। विभिन्न जातियों श्रौर उनके नियमादि का चर्णन लोकसाहित्य में मली भाँति मिलता हैं। भोजपुरी प्र देश में वोवी, नेटुझ्ा, दुसाव, चमार, कमकर, मल्लाह, गोड़, घरकार इत्वाद श्रनेक जातिया वसती हूँ । इन जातिया के श्रध्ययन के लिए लोकसाहित्य से वढकर कोई विपय नहीं होता । < लोकसाहित्य मे घामिक जीवन का व्योरेवार चित मिलता है। देवी- देवताओं की कहानियाँ, झनेक प्रकार के ब्रत-उपवास, पूजापाठ, तथा मत्र-्तत्र इत्यादि का सागोपाग वर्णन लाकसाद्प्य में प्राप्त होता है। इनसे हम किसी समाज की घामिक अवस्था का विस्तृत ज्ञान प्राप्त कर सर्कत हूँ । ' लोकसाहित्य का सबंध भापा-शास्त्र की दृष्टि से च्नत्यन्त मदत्वुण हूँ । लोकसाहित्य मे भापा-सास्न के भ्रघ्ययन के लिए शरक्षयभण्डार भरा पड़ा है। जटिल भावों को व्यक्त करने के लिए लोकसाहित्य में सरल एव सहज सटीक शब्द भरे पढ़ हैं । इनसे हम भपने साहित्य का भडार भर सकत हूं । इन दाव्दों की व्युत्पत्ति भो वड़ी रोचक होती है। इन शाव्दों के प्रयोग से हम उक्त समाज के वौद्धिक स्तर को भी जान सकते हूँ । लॉकसादित्य मे मुद्दावर, कहावत तथा सूव्ठियो की भरमार रहती हूं । इन्हें सुसस्कृत साहित्य में सम्मिलित कर भाषा को प्रभावणाली एव लोकोपयागी बनाया जा सकता हूं। ६? इसी प्रकार से लोकसाहित्य के अव्ययन से हमें नेतिक, मनोर्वेज्ञानिक, शाष्यात्मिक तथा भौतिक-लारम सम्दस्ची तथ्य भी उपलब्ध हा रकते हू । साक-




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