कला और सौन्दर्य | Kala Aur Saundarya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.92 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं ० रामकृष्ण शुल्क - Pn.Ramkrishan Shulk
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद कला पार सो दये
अथवा नए जुर्तों को चर मर में 'अरद्धत सगांत सुनाई दया करता था
नपातुलापन, अवयवों का सामंजस्य, अवश्य कला का भी आव-
श्यक गुण प्रतीत होता है । इस सामंजस्य से इन अवयवों का संगठन,
जिससे सब की एकता वनती है, घटित होता दे । सामाजिक कलाओं में यह
सामंजस्य दिखाई देता है । प्रकृति की कला में तो बह इतना दिखाई देता
है कि दिखाई ही नहीं देता । सब कुछ इतना एकाकार, पूणारूप, हो जाता
है कि अबयर्वों का पता ही नहीं लगता |
फिर भी, अकुति सायामात्र दै । बह मिथ्या है, इसलिए कि बह किसी
असल की नक़ल करती है । अतः उसके द्वारा जिस पूर्ण ता को हम देखते
है वह भी एक आभास ही है । पूर्ण सौन्दय-आानन्द की बुति जब इसे
समभ लेती है तो मनुष्य योगी वन जात! है और चिरन्तन ज्योति के
अखिल सौन्द्य को प्राप्त कर वह अपने झखिलानन्द रूप को प्राप्त करता
है। सच्ची कला यही है; क्योंकि सीन्दय भी प्रकाशरूप ही दै--उससे
हमारी आखें खुल जाती है ! आँखें खुल जाती है,--कि शदय खुल
लाता है !
आसन्दस्फुरण-रूपिणी सौन्दय बृत्ति अध्यात्म है, कला उसकी अभ्यास-
पद्धति है ।
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