भारतीय नगरों की कहानी | Bhaartiya Nagaron Kii Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१्द भारतीय नगरों को कहार्न सधूर काव्य है । दाहुजहाँ के विजयी बेटे श्रौरंगज्षेब ने काशी पर कुदृष्टि की । उसके भत्दिर तोड़ दिये, नगर को बुरो तरह लूटा । बाबा विदवनाथ का सन्दिर सस्जिद बन गया । उसकी कद से भागकर शिवाजी ने साथु के रूप में काशी में दो दिन दारण ली । कुछ काल उस पर मरहठों का भी श्रधिकार रहा श्रौर उसके सच्दिरों के भाग फिर एक बार जगे । -सुगूलों के सद्ाद शाह श्रालम ने जब बंगाल की दीवानी झ्रयेजों को सौंप दी तब काशी कस्पनी के हाथ लगी। काशी के राजा चेतिंहु ने कंपनी के गवर्नर जेनरल हेस्टिग्स को उसकी सनमानों से चिढ़कर नगर से मार भगा दिया । पर हेटिंटग्स लौटा श्र झरंप्रेजों का श्रधिकार नगर पर फिर हो गया । सन्‌ सत्तावन की श्राजादी की लड़ाई में काशी के नागरिकों ने भी श्रपने हाथ के करतब दिखाये श्र एक दिन इसी काशी में गोखले ने काँग्रेस की विश्ञाल सभा का संचालन किया । श्राजादी की लड़ाई में काशी ने बार- बार बलिदान किये । इस प्रकार काशी को नगरी ने बदलते जमाने देखे, हमलों की धमक सुनी, तलवारों की चमक देखी । पर दास्त्र को भंकार के साथ हो दान्ति श्रौर ज्ञान की उसकी गज जो उठी तो उसने दिशाश्रों को भर दिया। हजारों साल पुरानी वादी झाज भी 'तोनों लोकों सें ब्यारी' है ।




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