मुग़ल बादशाहों की हिन्दी | Mugal Badshaho Ki Hindi
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.63 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कारण अथवा राजनीति के चकर में पड कर हो ? हों, उसके
शासन में फारसी का ढिंढोरा पीटनेयाछा राजा ठोडरमल भी
झाददी दवदये में आकर ही फारसी करा प्रचार करता था |
उस समय वीं कूटनीति चाहे जो रही दो, पर इतना निर्विचाद
है कि अफपर तथा को राष्ट्रमापा दिंदी से जो प्रेम था
वह फारसी अथवा किसी अन्य भाषा से कदापि नहीं । प्रमाण
के लिये सर्व प्रथम राजा का यह पद्य छीजिए---
“ज्ञार को विचार फद्दा गनिया को लाज कद्ा,
गदददा को पान कद्दा, ऑॉघरे को आरसी ।
नियुनी को शुन कहा, दान कहा दारिदी फो,
सेवा कद्दा सम फो, अरडस की डार सी ॥
मदपी को सुचि कद्दा सॉच कद्दा ल्पट को,
नोच को वचन कद, स्यार की पुकार सी।
पटोडर' खुकवि ऐसे इठी ते न टारे दर,
भाव कही सघी वात भाव कही पारसी ॥”*
किंतु साथ दी राजा साहब को इस बात का पूरा पूरा पता
था कि फारसी से लोकहदय का कोई सवध नददीं | इसल्ये
चात' ही को अब भधिक सदत््व देना चाहिए। जब सो
देवबाणी का कार्य भी छोक्वाणी भाषा में हो होना चाहिए ।
अत उन्होंने झादेश दे दिया कि
*सोदे जिन सासन में आतमानुसासन सु,
जी के दुसददारी सुखकारी साँसी सासना ।
प--शिवसिंह सरोज, वददी, प्० ११७ 1
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