तसव्वुफ अथवा सूफीमत | Tasvabuf Athva Sufimat

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Tasvabuf Athva Sufimat by चन्द्रवली पांडे-Chandravali Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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< तसब्दुफ अथवा सूफीमत इतना से स्प दौ है कि विवाह से रति कौ वाड सौमित हो जाती है 1 प्रणम फा श्रय प्रेम नटी, रति कौ मर्यादा च्छे स्थिर क्रा है। प्रयय्रकी प्रतिष्ठा हो जाने पर रनि का चेंम निर्धारित हो जाता है । रति के चेन के निर्धारित हो जाने से नेम का परिमाज॑न श्ारंम होता है। परिमाजन से प्रम को परम प्रेम की धद्वी श्राप्त होती है । यदि यद्द ठीक है तो समर्पित सतान की कामवासना के प्ररिमा्जेन में ही सूफियों का परम प्रेम छिपा है । उपनिषदो में स्य कदा गया है कि प्रजाति और शआनद का एरायन उपस्थ है। परम पुरुष ने रमखे वी कामना से दिधा फ्रि बहुधा रुप धारण क्रिया। रमण ये लिए ही रमणी का सखजन हुआ । 'षपियों ने देखा कि उपस्थ में प्रचाति और रति का विधान सो है पर उसमें अस्त श्यौर णवत श्रानद्‌ कटो है > सतान भी मर्ल होती दै और अनद भी चथिक होता है। श्रस्तु, सदमानद्‌ येतो शाइवत श्यानद नहीं मिल सकता । शाश्वत श्ानद तो तभी उपलब्ध हो सता दै लव सहनानद के उपासके भी सदज रति का '्ालवन किसी शाश्वत सत्ता की बता लग भारत में परमपत्मा के साकार स्वरूप को खड़ा कर जिस माधुर्य भाव का श्रचार्‌ किया गया रूसी ना प्रसार शामी जातिया में निरास्ार का श्रालंबय जे मादन भाव के ष में हुआ । तथापि प्रथमे पन को लोग स्दय नरीं साते, पिठी सह फरीर यो दे देते हैं । दादिण मैं देवशवियाँ घी सितती है और वुत्त से रोगः आज भी दिसयाई पढ़ते £ै जिनवों उनके भात्रा पिना ने किसी सधु थो दे दिया और फ़िर बदा दोने पर उससे मोल लिया था उसे सपु षे साते दिया । मयय वो भी हु बची दर है। कूप एवं बारी क दा विदद करा देते दैं । शामी जातियों में विरोषवा यद थी दि उनकी समा संवार परस्पर देव रूपनें संभोग करना ठाधु समकती थी, उरुरों प्रतीत दे रूप में ग्रदय नहीं यरही दो । (९) इ भार दे अर ४ जान दे, इस सा० ४ झ० ५ नार १४.०२ सगुडा = घ० रे, कौन जान उ० १० मन उ 1 (९) ० आन न अन्चन्यन् डे 1




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