मुग़ल बादशाहों की हिन्दी | Mugal Badshaho Ki Hindi

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Mugal Badshaho Ki Hindi by चन्द्रवली पांडे-Chandravali Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रद ) कारण अथवा राजनीति के चकर में पड कर हो ? हों, उसके शासन में फारसी का ढिंढोरा पीटनेयाछा राजा ठोडरमल भी झाददी दवदये में आकर ही फारसी करा प्रचार करता था | उस समय वीं कूटनीति चाहे जो रही दो, पर इतना निर्विचाद है कि अफपर तथा को राष्ट्रमापा दिंदी से जो प्रेम था वह फारसी अथवा किसी अन्य भाषा से कदापि नहीं । प्रमाण के लिये सर्व प्रथम राजा का यह पद्य छीजिए--- “ज्ञार को विचार फद्दा गनिया को लाज कद्ा, गदददा को पान कद्दा, ऑॉघरे को आरसी । नियुनी को शुन कहा, दान कहा दारिदी फो, सेवा कद्दा सम फो, अरडस की डार सी ॥ मदपी को सुचि कद्दा सॉच कद्दा ल्पट को, नोच को वचन कद, स्यार की पुकार सी। पटोडर' खुकवि ऐसे इठी ते न टारे दर, भाव कही सघी वात भाव कही पारसी ॥”* किंतु साथ दी राजा साहब को इस बात का पूरा पूरा पता था कि फारसी से लोकहदय का कोई सवध नददीं | इसल्ये चात' ही को अब भधिक सदत््व देना चाहिए। जब सो देवबाणी का कार्य भी छोक्वाणी भाषा में हो होना चाहिए । अत उन्होंने झादेश दे दिया कि *सोदे जिन सासन में आतमानुसासन सु, जी के दुसददारी सुखकारी साँसी सासना । प--शिवसिंह सरोज, वददी, प्० ११७ 1




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