सूर - साहित्य की भूमिका | Sur Sahitya Ki Bhumika

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Sur Sahitya Ki Bhumika by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagarवाचस्पति त्रिपाठी - Vachaspati Tripathi

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वाचस्पति त्रिपाठी - Vachaspati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २१. ) सूरदास के संबंध में तीन किंवदंतियाँ प्रचलित हैं-- (कड)वेग्रंघे थे। सूर सागर का वह पद जो गुरुवंदना में लिखा गया है इस किंवदंतीः की पुष्टि करता है | (ख)उन्होंनेसवालाख पद बनाए | सूरदास के सवालक्त पद बनाने की किंवदंती जो प्रसिद्ध है ठीक विदित होती है क्योंकि एक लाख पद तो श्री वल्लमाचाय्य के शिष्य होने के उपरान्त और सारावली के समास होने तक बनाएं । इसके श्रागे- . पीछे श्रलग ही रहे । (ग.) सूरदास सारस्वत ब्राह्मण थे | अब हम ऊपर दी गई सामग्री पर झ्यालोचनात्मक विचार करेंगे । साहित्य लहरी के जिस पद से सूर के वंश-वच्त का निर्माण होता है मिश्र-- बंधु के द्रनुसार वह प्रक्षित है३े । इस पद में एक पंक्ति इस प्रकार है प्रबल दनच्छिन विप्रकुलतें शत्रु हद नास । इससे मुग़लों के पतन श्रौर पेशवाश्रों के श्रम्युदय का निर्देश मिलता है किन्तु यह घटना सूरदास से लगभग दो सौ वर्ष पीछे की है । इसके अतिरिक्त जहाँ इस पद में सूरदास को भाट सिद्ध किया गया है वहाँ चौरासी वार्ता में उन्हें स्पष्टत ब्राह्मण कहा है । चौरासी वार्ता की प्रामाणिकता में संदेह नहीं है अतएव इस पद के उल्लेख पर विश्वास नहीं किया जा सकता | वल्लमाचार्य उनके गुरु थे यह श्रन्तर्साच्य और चौरासी वार्ता से भली भाँति प्रगट है । चौरासी वार्ता से यह भी प्रगट होता है कि १. सूर कहा कहि दुविध ब्रांवरों बिना मोल के चेरा | २. सूरसागर की भ्रुमिका प० २. ( खेमराज श्री कृप्णदास क संस्करण ) | न ३. हिन्दी नवरत्न २३६ गप्र० ॥




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