आचार्य शुल्क और चिन्तामणि | Acharya Shukla Aur Chintamani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Acharya Shukla Aur Chintamani by डॉ. प्रेमकांत टंडन - Dr. Premkant Tandan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. प्रेमकांत टंडन - Dr. Premkant Tandan

Add Infomation About. Dr. Premkant Tandan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
16 आया शुक्ल और चिस्तामणि विषय को सीमित रखने के लिए उसकी सम्यक्‌ सयोजना भी आवश्यक है । निबध च्यो छिधय की प्रस्तुति या उसके विवेचन के क्रम में अप्रासंगिक तत्वों के अवांछित हस्तक्षेप से बचाया जाना भी अपेक्षित है दूसरा जर्थ मुझे अपेक्षाकृत कम ग्राड रूगता हैं । शास्त्र से व्यवहार नहीं चलता व्यवहार से शास्त्र बनत है । व्यवहार में अर्थाद्‌ वास्तव में इस समय लिखें जा रहे निन्ध भिन्न प्रकार के भी मिलते हैं इसलिए लक्षणों के निर्धारण में उनका भी आधार ग्रहण किया जाना नाहिएं । निवध में किसी विशेष दृष्टिकोण से ही सही विषय का विस्तृत और गहन विवेचन भी प्रस्तुत किया जा सकता है आचार्य शुक्ल का कविता क्या है ? शीर्षक निवबन्ध विषय का गहरा और विस्तृत विवेचन नहीं है--यह नहीं म्गना जा सकता । अंग्रेजी मे रिचर्ड मैककियन का द फिलसाफिक बेसेज आफ आर्ट एण्ड क्रिंटिसिज्म शीर्षक निबन्ध विस्तार में लगभग अम्मी पृष्ठों का हैं और अपने विषय का गंभीर सूक्ष्म और विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है बल्कि इसमें तो निर्बंध की 3-4 हजार शब्द-सीमावाली शर्ते भी टूट जाती है क्योकि यह करीब तीस हजार शब्दों का है । ये निबंध अपवादस्वरूप नहीं हैं । विषय-प्रधान तथा अपेक्षाकृत वस्तुपरक निबधों मे इस प्रकार की बृहदाकार रचनाएँ और भी बहुत-सी है । शुद्ध साहित्यिक एवं व्यक्ति-प्रधान निंबधों में स्थिति भिन्न मानी जा सकती है । वहाँ विपय-गाधीर्य और विस्तार नम तो सभव है न काम्य क्योकि इस प्रकार के निबधो में विषय बहाना मात्र होता है या नगण्य होता है । विषय के ब्याज से रचनाकार की व्यक्तिगत प्रतिक्रिया अथवा उसकी मन स्थिति का सरस निरूपण ही उसका इष्ट होता है । विषय की गहन विवेचना साहित्यिक निबंध के लालित्य के लिए घातक हो सकती है चह उसकी सहजता आत्मीयता और सजीवत को क्षरित कर सकती है अतएव सीमित विषय की शर्त यहाँ स्वीकार की जा सकती है साहित्यिक निबंध वास्तव में एक कलाकृतिं है । वह रचनाकार के सर्जनात्मक व्यक्तित्व का प्रतिबिस्ब होता है । रचनात्मक सौष्ठव अभिव्यक्तिगत अन्मुक्तता और शैली व्मी स्फूर्ति एव दीप्ति से वह पाठक को सहज आहलादित करता है विषय के दार्शनिक या बिद्टनापूर्ण सागोफग विवेचन ट्वारा पाटक का ज्ञानार्जन उसका लक्ष्य नहीं होता जैसे--बालमुकुन्द गुप्त के निबन्ध सामान्यतया प्रत्येक निबन्ध में तीन तत्त्व होते हैं--चितन भाव अथवा रचनाकार का आत््मतत्व और कल्पना । विविध प्रकार के निर्बंधों में इन तत्वों का अनुपात भिन्न-भिन्न होता है । त्दनुसार उनकी परिधि भी भिन्न-भिन्न हो जाती है । चिंतन अथवा खुद्धि-प्रधान निबंध मे आर एस + क्रेन द्वारा सपादित फ़िरिक्सि एण्ड क्रिटिसि्प 1970 में संग्रहीत । इस संग्रह को संपादक ने एसेज इन मेथड कहा है अर्थात्‌ उल्लिखिन निबंध सपादक के अमुसार एसे ही है और कुछ नहीं । प्रस्टुत संदर्भ मेस्जॉन लॉक के एन एसे ऑन दयुमैन अप्डरस्टेंडिग और बनॉर्ड नोसंकि के एन एसे आन दे फिलाँसफी ऑफ स्टेट शोर्षक रचनाओं का उल्लेख प्रासगिक है । थे रचनाएँ एस हैं पर पुस्तकाकार हैं स्पष्ट है कि ये बहुन विस्तृत हैं यहाँ वास्तव में एसे का व्युत्यत्तिगत अर्थ चरिऊर्प होता है. ये रचनाएँ विषच्य क परीक्षण खा उसकी माप लैल का एक प्रवास हैं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now