मध्यकालीन कविता | Madhyakalin Kavita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.01 MB
कुल पष्ठ :
58
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नैन खँँजन दुड़ केलि करेहीं। कुच नारंग मधुकर रस लेहीं। |
सरवर रूप विमोहा, हिये हिलोरहि लेइ ।
पाँव छुवै मकु पावों एहि मिस लहरहि देइ । 1६३ |
धरी तीर सब कंचुकि सारी । सरवर महँ पैठीं सब बारी | ।
पाइ नीर जानौं सब वेली । हुलसहिं करहिं काम कै केली | |
करिल केस बिसहर विस भरे। लहरँँ लेहि कर्वैल मुख धरे । ।
नवल बसंत सँवारी करी। होइ प्रगट जानहु रस भरी। |
उठी कोंप जस दाख़िं दाखा। भई उनंत पेग कै साखा | |
सरिवर नहिं समाइ संसारा। चाँद नहाइ पैठ लेइ तारा | |
धनि सो नीर ससि तरई ऊई। अब कित दीठ कमल औ कूईं। ।
चकई बिछुरि पुकारै, कहाँ मिलौं, हो नाहैं।
एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माँह । 1७ ।
कहा मानसर चाह सो पाई। पारस रूप इहाँ लगि आई। ।
भा निरमल तिन्ह पायन्ह परसे। पावा रूप रूप के दरसे | |
मलय समीर बास तन आई । भा सीतल गै तपनि बुझाई | |
न जनौं कौन पौन लेइ आवा। पुन्य- दसा भै पाप गँवावा । |
ततखन हार बेगि उतिराना। पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना | |
विगसा कुमुद देखि ससि रेखा। भै तहँँ ओप जहाँ जोइ देखा। !
पावा रूप रूप जस चहा। ससि - मुख जनु दखन होइ रहा। |
नयन जो देखा कँवल भा। निरमल नीर समीर |
हँसत जो देख, हंस भा। दसन जोति नग हीर। 1 ८। |
नख शिख खंड
का सिंगार ओहि बरनौं, राजा। ओहिक सिंगार ओहि पै छाजा। | दर
प्रथम सीस कस्तूरी केसा। बलि बासुकि, का और नरेसा | |
भौर केस, वह मालति रानी । बिसहर लुरे लेहिं अरघानी । ।
बेनी छोरि झार जौं बारा। सरम पतार होइ अँधियारा। |
कोंवर कुटिल केस नग कारे। लहरन्हि भरे भुअंग बैसारे | |
बेधो जनौं मलयगिरि बासा। सीस चढ़े लोटहिं चहूँ पासा । ।
घुँघुरवार अलकैं विस भरी। सँकरै पेम चहैं गिउ परी । ।
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