जैन धर्म का प्राचीन इतिहास (प्रथम भाग) | Jain Dharma Ka Prachin Itihas (Part 1)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.68 MB
कुल पष्ठ :
335
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाराज समृूद्रविजय का राज्यासिपेक
वसुदेव की कुमार लीलाये
भ्रनेक कस्यास्रो के साथ विवाह
रोहिणी की प्राप्ति
वलगद्र बलराम का जन्म
कस का जन्म श्रौर वसुदेव दारां वचन दान
वसुदेव-देवकी का विवाह
कप्ण-जन्म
कृष्ण का चाल्य-जीवन
कृष्ण द्वारा देवियों का मान-म्देन
गोवर्घन पंत उठाने का रहस्य
देवकी का पुत्र से मिलन
कृष्ण को दास्त्र-विद्या का शिक्षण
चाणूर श्रौर कस का वघ
माता-पिता से कृष्ण का मिलन
सत्यभामा और रेवती का विवाह
यादवों के प्रति जरासन्घ का श्रभियान
भगवान का गर्भ कल्याणक
जन्म कल्याणक
यादवों द्वारा शौयंपुर का परित्याग
द्वारका नगरी का निर्माण
रुक्मिणी के साथ कृष्ण का विवाह
प्रयुम्त का जन्म झ्रोर अपहरण
प्रयुम्न को विजय-लाभ
प्रयुम्न की दृढ़ शील-निष्ठा
प्रचुम्न कुमार का माता-पिता से मिलन
महाभारत-युद्ध ३०२--३०६
कुरुवदा
राजकुमारो का प्रशिक्षण
पाण्डवो का श्रज्ञाततवास
द्रौपदी-स्वयम्वर
पाण्डवो का पुन शअ्रज्ञातवास
पाण्डव विराट नगर मे
पाण्डव द्वारिका में
यादव कुल के प्रति जरासन्घ का कोप
हुरुक्षेत्र मे महाभारत-युद्ध ३०६--३१४
माता कुन्ती श्र कर्ण की भेंट
व्यूह रचना
युद्ध का भेरी-घोष
श्रीकृष्ण द्वारा जरासन्ध का वघ
श्रीकृष्ण द्वारा दिग्विजय
गए
पाण्डवों का निप्कासन
नेमिनाथ का शौर्य प्रदर्णन 1
नेमिनाथ के विवाह का श्रायोजन ३१४
भगवान का दीक्षा कल्याणक
राजीमती द्वारा दीक्षा
भगवान नेमिनाथ का के वलज्ञान कल्याणक
भगवान का धर्म विहार
भगवान का धर्म परिकर
गजकुमार मुनि पर उपसर्ग
भगवान की भविष्यवाणी
द्वारफा दाह
श्रीकृष्ण का करुण निधन
मोह चिव्हल बलराम की प्रव्रज्या
पाण्टवों की निर्वाण-प्राप्ति
भगवान नेमिनाब का निर्वाण कल्याणक
जरत्कुमार की चण-परम्परा
भगवान नेमिनाथ एक ऐतिहासिक
व्यक्तित्व
श्रीकृष्ण के गुरु
श्रीकृष्ण को बिष्णु का अवतार मानने
को परिकट्पना
भगवान नेमिनाथ से सम्बद्ध नगर
भगवान नेमिनाथ की निर्वाण
भूमि-गिरनार
ब्रह्मदत्त चफ्रवर्ती
दवेताम्वर परम्परा में ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती
हिन्दू परम्परा में ब्रह्मदत्त कथानक
हा
1 ४
न
३२४-३२८
३२८
३२८-३३२
३३९२-२३३८
रेरेया रे४
षर्डविद्वतितम परिच्छेद
भगवान पाइवनाथ
पुर्वं भव
प्रथम भव जि
द्वितीय भव
तृतीय भव
चोथा भव'
पाचवाँ भव
छटवाँ भव
सातवाँ भव'
झाठवाँ भव
नौवाँ भव
गर्भ कल्याणक
दे दा डे
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