चिकित्सा - चन्द्रोदय भाग 5 | Chikitsa-chandroday Vol - 5
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.23 MB
कुल पष्ठ :
716
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ रू |]
यह घटना तो झब पुरानी हो चली, इसे हुए दो साल बीत गये ।
पाठक ! 'झाब एक नयी घटनाकी बात भी सुनें और उसे पागलोंका
श्रलाप या मूखे बकचादीकी थोथी बकवाद न समक कर, उसपर
शोर भी करें:--
अभी गत नवस्वरमें, जब मैं इस पश्चम भागका प्रायः झाघा काम
कर चुका था, सेरी घरवाली सख्त बीमार दो गयी । इधर बच्चा डु्रा,
उधर महीनासे झानेवाले पुराने ज्वरने जोर किया। झाँव और
खुनके दुस्तोंने नस्बर लगा दिया, मरीजाकी जिन्दगी ख़तरेमें पढ़
गई । मित्नोंने डाकुरी इलाजकी राय दी। कलकत्तेके नामी-नामी
तज्लुबेकार डाकुर घुलाये गये । इलाज होने लगा । घररे-घरटे और
दो-दो घराटेमे छुसखे बदले ज्ञाने लगे। पैसा पानीकी तरह बखेरा
जाने लगा; पर नतीजा कुछ नहीं --सब व्यर्थ। “ज्यों-ज्यो द्वाकी मज़॑
बढ़ता गया” चाली कहावत चरिताथ होने लगी । न किसीसे बुखार
कम होता था झौर न दस्त दी बन्द होते थे । झच्छे-झच्छे एम ० डी०
डिप्रीघारी बल्लायत और श्रमेरिकासे पास करके आाये हुए पुराने डाकूर
दवाझोपर दवाएं बदुल-बदलकर फि कत्तंव्य विसूढ़ हो गये । उनका
दिमाग़ चक्कर खाने ल्नगा। किसीने माथा खुज्लाते हुए कहा--“झअजी !
पुराना चुख़ार है, ज्वर दृड्टियोमें प्रविष्ट हो गया है, यकृतमें सूजन
ा गई है । इमने झच्छी-से-झच्छी दवाएं तजवीज की, ऐश पर्स ले
सलाह भी लीं, पर कोई दवा लगती दी नहीं, समभकमें नहीं आता
क्या करें ।” किसीने कहा--“झजी ! अब समझे, यदद तो एनीमिया है,
रोगीमें खूनका नाम भी नहीं, नेत्र सफेद दो गये हैं, हालत नाजुक
है, ज़िन्दगी ख़तरेमें है। खैर, हम उद्योग करते हैं, पर सफलताकी
झाशा नद्दी--झगर जगदीशको रोगिणीकों जिलाना मंजुर है डाथवा
मरीज्ञाकी ज़िन्दगीके दिन बाकी है, तो शायद दवा लग जाय ।” बस,
'कहाँ तक लिखें, बड़े-बड़े डाकटर झाकर मरीजाकी नब्जु देखते, स्टेयल-
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