चिकित्सा - चन्द्रोदय भाग 5 | Chikitsa-chandroday Vol - 5

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Chikitsa-chandroday Vol - 5 by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ रू |] यह घटना तो झब पुरानी हो चली, इसे हुए दो साल बीत गये । पाठक ! 'झाब एक नयी घटनाकी बात भी सुनें और उसे पागलोंका श्रलाप या मूखे बकचादीकी थोथी बकवाद न समक कर, उसपर शोर भी करें:-- अभी गत नवस्वरमें, जब मैं इस पश्चम भागका प्रायः झाघा काम कर चुका था, सेरी घरवाली सख्त बीमार दो गयी । इधर बच्चा डु्रा, उधर महीनासे झानेवाले पुराने ज्वरने जोर किया। झाँव और खुनके दुस्तोंने नस्बर लगा दिया, मरीजाकी जिन्दगी ख़तरेमें पढ़ गई । मित्नोंने डाकुरी इलाजकी राय दी। कलकत्तेके नामी-नामी तज्लुबेकार डाकुर घुलाये गये । इलाज होने लगा । घररे-घरटे और दो-दो घराटेमे छुसखे बदले ज्ञाने लगे। पैसा पानीकी तरह बखेरा जाने लगा; पर नतीजा कुछ नहीं --सब व्यर्थ। “ज्यों-ज्यो द्वाकी मज़॑ बढ़ता गया” चाली कहावत चरिताथ होने लगी । न किसीसे बुखार कम होता था झौर न दस्त दी बन्द होते थे । झच्छे-झच्छे एम ० डी० डिप्रीघारी बल्लायत और श्रमेरिकासे पास करके आाये हुए पुराने डाकूर दवाझोपर दवाएं बदुल-बदलकर फि कत्तंव्य विसूढ़ हो गये । उनका दिमाग़ चक्कर खाने ल्नगा। किसीने माथा खुज्लाते हुए कहा--“झअजी ! पुराना चुख़ार है, ज्वर दृड्टियोमें प्रविष्ट हो गया है, यकृतमें सूजन ा गई है । इमने झच्छी-से-झच्छी दवाएं तजवीज की, ऐश पर्स ले सलाह भी लीं, पर कोई दवा लगती दी नहीं, समभकमें नहीं आता क्या करें ।” किसीने कहा--“झजी ! अब समझे, यदद तो एनीमिया है, रोगीमें खूनका नाम भी नहीं, नेत्र सफेद दो गये हैं, हालत नाजुक है, ज़िन्दगी ख़तरेमें है। खैर, हम उद्योग करते हैं, पर सफलताकी झाशा नद्दी--झगर जगदीशको रोगिणीकों जिलाना मंजुर है डाथवा मरीज्ञाकी ज़िन्दगीके दिन बाकी है, तो शायद दवा लग जाय ।” बस, 'कहाँ तक लिखें, बड़े-बड़े डाकटर झाकर मरीजाकी नब्जु देखते, स्टेयल-




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