समाज रचना सर्वोदय दृष्टि से | Samaj Rachna Sarvoday Dristi Se

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Samaj Rachna Sarvoday Dristi Se by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-प्रवेश फ्ु या चिलकुल बदले हुए रूप की वात समभक से चाइर की होती है ) तथापि कल्पनाएँ करने वाले श्पनी-द्रपनी कल्पना संसार के सामने समय-समय पर रखते रहे हैं श्रौर बहुत से काल्पनिक चित्रों में पीछे यथेष्ट तत्व मालूम हुझ्ा है; उन्होंने श्रागे-पीछे, देर-सवेर मूर्त-रूप धारण किया है । हमारी झ्पनी वात; भावी संसार का चित्र--इन पंक्तियों का लेखक भी कुछ न कुछ स्वमदर्शी रहा हैं। हमने समय-समय पर समाज की विविध बातों के भावी रूप पर कुछ ॒ फुटकर विचार प्रकट किया है । श्रब से ग्यारह वर्ष पूर्व हमने भावी संसार के सम्बन्ध में कुछ इकट्ठा प्रकाश डाला था । ( यह “भावी नागरिकों से पुस्तक के अंतिम श्रध्याय के रूप में प्रकाशित हुआ था ), इसका सुख्य भार यह है-- भावी संसार में हरेक श्रादमी तन्दुरुस्त, ह्रष्ट-पुष्ट, स्वतंत्र रूप से विचार करने वाला, स्वाधीन जीवन बिताने वाला, श्रन्घ-विश्वासों से दूर, श्रम या मेहनत का श्रादर-मान करने वाला, स्वावलम्बी, निडर और दूसरों की सेवा श्र सहायता में द्यानन्द लेने वाला होगा । पमावी समाज किसी भी धर्म-पुस्तक के सब्र वाक्यों को श्राँख मीच कर मानने के लिए मजबूर न होगा । भावी संखार में इंश्वर या पर- मात्मा कुछ खास-खास इमारतों --मंदिर, मसलनिद या गिरजा आदि-- में न माना जायगा । उसके दर्शन दर जगह, हरेक श्रादमी में होंगे । प्रत्येक नागरिक का श्रादर्श-वाक्य यह होगा--यह दुनिया मेरा देश है और नेकी करना मेरा धर्म है ।” भावी संसार में दमीरी श्रौर गरीवी का; पूजीपति श्र मजदूर का, जमींदार और किसान का भेदभाव सहन न होगा ! सब झादमियों में समानता श्रौर भाईचारा होया। न तो किसी थ्रादमी को झपने भोजन-वस्त्र, रहने की जगह, शिन्ना श्ौर स्वास्थ्य आदि साधनों की




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