भारत की मौलिक एकता | Bharat Ki Moulik Ekata

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Bharat Ki Moulik Ekata by श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युक्तियाँ ७ कीट श सारे देश में एक युग में एक सी साहित्यिक दौली प्रचलित मिलती हैं । साहित्यिक अभिव्यक्ति के प्रकार भी देवा भर में एक से रहे हूं। सूत्र, साप्य, चूणि, टीका, संग्रह, काव्य, नाटक, कथा, माख्यायिका आदि के रूपों में देखव्यापी एकता पाई जाती है 1 ः (१३) भारतीय दिक्षा-पद्धति में सर्वेत्र एक समानता थी । शास्त्रीय शिक्षण में गूरु-शिप्य की प्रणाठी देश भर में मान्य थी । बेदिक काल से उन्नीसवीं दाती तक वह चालू रही । समान पाठ्य पग्रन्यों के द्वारा इस पद्धति की एकता का अतिरिक्त परिचय मिलता हूं । पाणिनि की अष्टा- थ्यायी और पतंजलि का महामाप्य करमीर से कन्याक्ूमारी तक व्याकरण की दिक्षा के मुख्य साधन थे । उनकी टीकाओं की देश-व्यापी सान्यता ड्ोती थी । कालिदास के ग्रन्थ और पंचतंत्र भी इस दिक्षा सम्बन्धी एकता के प्रतीक हैं । राज्य प्रणाली चाहे जो रही हो, विद्वानु और शास्त्रीय न्साहिंत्य देशा में सर्वत्र जादर पाते थे । काशी, तक्षशिला, मथुरा, नवद्ीप, उज्जधिनी, कांची, नालंदा आदि विंख्यात विद्यापीठों में चारों दिश्याओं के छात्र अध्ययन के लिये एकत्र होते और वहां से ज्ञान का प्रवाह देश.भर में अवाव रूप से फलता था । (१४) देश की एकता का स्थूल रूप में प्रत्यक्ष सिद्ध प्रमाण कछा और स्थापत्य में पाया जाता हैँ। युगक्रम के अनुसार एक जैसी कला-शैठी देवा में व्याप्त पाई जाती है । मूर्तियों के निर्माण में प्रायः एक से क्षण और ध्यान सर्वत्र मिलते हैं । भारतीय मूर्तिकला और प्रतिमाओं, जैसे जह्मा, विप्णु, शिव, सूर्य, वुद्ध, तीर्थंकर, देवी, आदि के रूपों को देखकर ऐसा प्रतीत होता हैं मानों किसी देवाव्यापी परिपद्‌ू ने उन्हें सबके लिये स्थिर किया हो । कठा के अछंकरण गौर अभिन्राय जेसे कमर, पूर्णचट, रुवस्तिक, घर्मचक्र, कल्पवृक्ष, आादि भी सवेत्र एक जेसे हैं। उनकी भाषा मारतीय हैं, और जहां तक भारतीय कला का विस्तार मिलता है , हम सर्वत्र कला की परिभापषाओं में एकरूपता पाते हैं। पर्वतों में टंकित युहा- मन्दिरों और पापाण निर्मित मन्दिरों की वास्तु बैठी में किचित्‌ प्रान्तीय




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