श्री अरविन्द और उनका योग | Shri Arvind Aur Unka Yog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीअरविन्द-चरित इसका प्रयोग कांग्रेसके वार्षिक अधिवेगनसे विघयनिर्वाचिनी ससितिकी गुप्त बैठकॉंकी आड़से माडरेटदलके नेताओँसे अर्किंचित्कर मुठभेड़ौके सिवा और किसी बातमे न हों पाता था । श्रीअरविन्दने इस दलके नेताओकों उभारा कि वे खुछमखुछा एक निश्चित और ललकारनेवाले काय- क्रमके साथ मैदानमे आवें और महाराष्ट्रके छोकप्रिय नेता तिलककों लोकनायक मानकर अखिल भारतीय दल कायम करके; पुराने राजनीतिशोके प्रवछ बनकर बेठे हुए माडरेट- दल नामी गुरपर आक्रमण करें और कांग्रेस और देशपर अपना अधिकार जमावें । माडरेटद्लवालो और राष्ट्रीय दलवालों ( जिन्हें उनके विरोधी गरम दलवाले कहा करते थे उन-) के वीच जो इतिहासप्रसिद्ध संघष्ष हुआ उसका यही मूल है । उसीसे दो वर्षके भीतर भारतीय राजनीतिक उद्योगका स्वरूप सवथा बदल गया | नवजात राष्ट्रीय दलने देशके सामने स्वराज्य ( स्वाधी- नता ) को ध्येय रखा जहाँ पहले शासन-सुधारकी मन्द गतिसे सो दो सो वषमें कभी किसी दिन पूरी होनेवाली ओपनिवेशिक स्व॒राज्यकी मन्द-सी सादा दी केवल; माडरेटॉके ( नरम दके ) सामने थी । इसी समय “वन्दे मातरमू” नामक दैनिक पत्र स्थापित हुआ जिसके सम्पादक श्रीअरविन्द थे और श्रीअरविन्दके | .




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