शेर और शुखन भाग - 3 | Sher Aur Sukhan Part -iii

Sher Aur Sukhan Part -iii by हफीज जालंधरी - Hafij Jalandhari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शाद अज़ीमाबादी १७ नहीं रहते रिया ओ-कबह फिर भुलेंसे भी दिलमें । 1. सुहब्बत यारकी इन्साँ बना देती है इन्साँको ॥ शाद भौंरे या तितलीके इश्कको इक नहीं समभकते । वे तो जिसके हो गये जीवनभर उसे निभाना ही सच्ची आदिकी समभते हैं मानवी प्रेमके साथ-साथ कोई ईश्वरीय प्रेमका भी दम भरे तो वह उसे कृफ्र समभते है-- सशरबेडइक्सें दिला कुफ़ है यारसे रिया । ड दिलको हूँ गर वुतोसे इइक जिंक्रे-खुदाकी वजह क्या ? शाद इदकसे तग आकर मरना नहीं चाहते बल्कि वह तो उम्रे- दराज़ चाहते हे -- मुक्ष-सा फक़ौर आपसे राज्ो-नियाज हो। या रब हयाते-इवक्ने-मुहब्बत दराज्ष हो ॥ और वे अपने महबूबको इघर-उघर खोजना नादानी समभते है। उनका विद्वास है कि उनका प्रियतम सर्वत्र व्याप्त है-- गुबार आईनये-दिलका साफ हो तो फिर । उन्हींकी दाक्ल नुसायाँ रहे जिघर देखो ॥ और जब ध्यानमें प्रियतम आ गया तब वह ध्यान कैसे तोडा जाय ? है जिसमें ध्यान कावये-अबरू-ए-यारका । ऐसी नमाज़ जल्द इलाही मदा न हो ॥ ज़ाहिरदारी दिखावटीपन चुराई _ प्रेमघ्संें हि है दिखावटी प्रेम ... अन्तरग वार्तालापमें सम्मिलित लम्बा हो यारकी भवे रूपी काबेकी सहरर्ण




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-08 13:02:10
    Rated : 8 out of 10 stars.
    CATEGORY OF THIS BOOK IS "SHAYARI"
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