आधुनिक राजनीतिक विचारों का इतिहास | Aadhunik Rajneeti Vicharo Ka Etihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.57 MB
कुल पष्ठ :
388
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ज्योतिप्रसाद सूद - Jyoti Prasad Sood
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१९ वीं दाताव्दी के आरम्भ में जिसे घर्म-. प्रचार श्रात्दोनन लय विकास इस
उसने जनता के झ्न्तः करण को मजदूरों के दखि पतया दारिद्रय के प्रति घंधिया
वेदनाशील बना दिया । धर्म प्रचारकों से उन लोगों को मानव थ्ात्मा के गौरव
का संदेवा दिया जिन्हें कल-कारखानों में ऐसी घोचनीय स्थिति में काम करना पड़ता
था जिसकी कि उन्हें पहने से कोई झ्रादत न थी । उनके उपदेधों ने दलित पर्ग के
प्रति सहानुभ्रुति श्रौर संवेदना का संचार किया श्र उपके जीवन भाग्य मैं सुधार
करने के लिये एक श्रान्दोलन को जन्म दिया 1
जिस समय धर्म प्रचारक तथा कविगण मानव «व्यक्ति के मुल्य तथा गौरव
पर बल दे रहे थे तथा मनुष्य के सामने आआदर्शों की प्रतिस्पापना कर रहे थे, ठीक
उसी समय श्रौद्योगिक क्रान्ति मानव जीवन को पत्तित कर नही थी श्रौर मनुष्य को
हृदय विदारक स्थिति में कार्य करने को विवदा कर रही थी । उस समय श्रादर्य तथा
यथार्थ में सचमुच वड़ा भारी विरोध था । एक नवीन समस्या झ्र्थात् सर्वसाधारण
के कष्टों की समस्या उत्पन्न हो गई । ऐसी स्थित्ति में यह स्वाभाधिक ही था कि
वेन्थम सरीखे क्रान्तिकारी सुधारकों ने मनुष्य के सुस्वोपभोग के श्रघिकार पर घल
दिया श्रौर सरकार के सामने जीवन तथा कार्य की स्थितियों में तुपार करने घोर
उन्हें विनियमित करने की तुरन्त आवश्यकता को जोरदार ढंग से रख्या। इस पवार
उपयोगितावाद (ए61100718 01581) नामक विचार पद्धति का जरम हुआ |
इसका डिलान्यास वेन्थम ने किया, भ्रीर जेम्स मिल, जॉन स्टुयटं मिलन तथा लॉन
श्रॉस्टिन इस के मुख्य संदेश वाहक थे । उनके मिद्धान्तों थी समीक्षा फरने से
पहिले उपयोगित्तावाद के स्वरूप तथा श्र के विपय में दो मब्द कह देना घाधस्यफ
प्रतीत होता है
उपयोगितावाद छाप) पनन १६ थीं सतादरी के पृ
उपयोगितावाद का प्रादुर्भाव होना तथा उसका थीघ् हो दिदार संगस पर श्र द्वादिय
हो जाना प्रिटिया कल्प विकल्प के इतिहास में एक सहरयपूर्यों परना
इसके किसी भी महान विचारक, थ्र्वात् ब्ेस्वम, जेम्स मिल, जां
जोन झ्ॉस्टिन, की तुलना वेकन, हॉट्स, लॉक, व
के चिचार “न दे न «रे धन परन्त नम्यसयानन कर है न जप, पक कि दे जनक वी पा . जिद
के रकों से सहीं की जा सकती । परन्त उपरोक्त घिचारपों से से दिसी से भी
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कोई एक निश्चित भ्रनुवायी समूह को इस प्रकार प्रदान नहीं दिय
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कमवद्ध ।धिचार प्रस्ताया पे रा संत, पसस्तु
वेन्थम ने । हॉब्स ने ग्वश्य एस क्रमवद्ध
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